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________________ कहलाता है। उदाहरण के लिए कल्पना कीजिए - तीन आदमी जा रहे हैं। एक सामने पड़ा हुआ सीप का टुकड़ा देखा। उसने कहा- देखो, सामने सीप का टुकड़ा पड़ा है। सीप के टुकड़े को सीप का ही टुकड़ा बताने वाला यह पहला व्यक्ति सम्यग्दृष्टि है। दूसरे आदमी ने पहले की बात सुनकर कहा - 'सीप तो समुद्र में होती है। यहां जंगल में सीप का टुकड़ा कहां से आया? यह तो चांदी है।' वास्तव में सामने दिखलाई देने वाली वस्तु सीप ही है परन्तु दूसरा आदमी उसे चांदी बतला रहा है इसलिए वह मिथ्यादृष्टि है । पहले समयग्दृष्टि ने कहा- उसके पास चलकर निर्णय कर लो, जिससे सीप या चांदी का निर्णय हो जाय । कोई जिद्द की बात तो है नहीं । अगर चांदी हुई तो लेना, न लेना दूसरी बात है, पर निर्णय तो हो ही जायगा । मिथ्यादृष्टि ने उसकी बात का विरोध करते हुए कहा- इसमें निर्णय करने की क्या आवश्यकता है? कौन वहां तक जाय और वृथा चक्कर काटे ! चांदी तो वह है ही । तब तीसरे आदमी ने कहा-'सीप हो या चांदी हो, हमें क्या करना है? इस प्रकार कहकर वह दोनों की बात मानता है, स्वबुद्धि से निर्णय नहीं करता। ऐसा व्यक्ति सम्यग्मिथ्यादृष्टि है । सम्यक् - दृष्टि वास्तविक निर्णय करने को तैयार है अपनी भूल सुधारने के लिए उद्यत है, मिथ्यादृष्टि दुराग्रह में पड़ा है और मिश्रदृष्टि वाला दोनों की बात सही या गलत दोनों प्रकार से मानता है; वह भी निर्णय नहीं करता । सम्यग्दृष्टि जीवादि तत्वों को यथार्थ रूप से जानता है। मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधी कषाय का क्षयोपशम होने पर सम्यग्दृष्टि प्राप्त होती है। सम्यग्दृष्टि पुरुष सदा सत्य के निर्णय के लिए उद्यत रहता है, कभी हठ नहीं करता । परन्तु मिथ्यादृष्टि किसी बात को मिथ्या समझ करके भी दुराग्रह वश होकर छोड़ता नहीं है और सम्यग्दृष्टि की बात को सही मानता हुआ भी कहता है कि मैंने जो बात कही है, वह मिथ्या कैसे हो सकती है ? सम्यग् मिथ्यादृष्टि अक्ल का ही दुश्मन बना रहता है। वह किसी बात का निर्णय ही नहीं करना चाहता । वह झूठी बात को झूठी और सच्ची को सच्ची सिद्ध करने में कोई दिलचस्पी नहीं लेता । गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं - गौतम ! नरक के जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और मिश्रदृष्टि भी होते हैं। भगवती सूत्र व्याख्यान ६३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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