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________________ जो-जो संस्कार होते हैं, उनके अनुसार पुनः सब संस्कार स्थूल रूप में आ जाते हैं। यहां सूक्ष्म का अर्थ आंखों से न दिखाई देने वाला बारीक समझना चाहिए, यों तो यह सूक्ष्म शरीर भी पौद्गलिक ही है। कोई यह न समझ ले कि हम लुक-छिपकर एकान्त में जो काम करते हैं, उसे कोई देखता नहीं है। कभी मत सोचो कि जब कोई देखता हो तो पाप से अलग रहें, और कोई न देखता हो तब पाप से डरने की आवश्यकता नहीं। तुम्हारा पाप कोई दूसरा व्यक्ति देखे या न देखे, मगर कार्मण शरीर में तो उसका चित्र अंकित हो ही जाता है। तुम्हारे संस्कार शरीर में उसका बंधन हुए बिना नहीं रहता। संस्कार शरीर में बंधन किस प्रकार होता हैं? यह आपको मालूम नहीं होता, लेकिन बंधन अवश्य होता है। इसे समझने के लिए निम्न उदाहरण उपयोगी होगा। दूध प्रायः सभी पीते हैं। दूध पीने पर पेट में पहुंचने के पश्चात् उसका क्या-क्या होता है? यह आपको मालूम है यह बात प्रत्यक्ष में दिखाई नहीं देती कि दूध से क्या-क्या बनता है? और किस प्रकार बनता है ? लेकिन वैज्ञानिक विचार से, शरीरशास्त्र की दृष्टि से और अनुभव से देखो तो मालूम होगा कि दूध किस-किस रूप में परिणमन करता है और उससे किस-किस अंग को क्या-क्या शक्ति प्राप्त होती है। सिद्धान्त का कथन है कि पेट में गया हुआ भोजन दो भागों में विभक्त होता है। खलभाग और रसभाग में। रसभाग में तैजस शरीर अलग करता है, जिसे लोक व्यवहार में जठराग्नि कहते हैं या तेज कहते हैं। खलभाग और रसभाग अलग-अलग करने के पश्चात् तैजस शरीर रसभाग में से बारीक से बारीक पुद्गल खींचकर आंख को पहुंचाता है। उससे कम बारीक पुद्गल कान में, उससे कम बारीक नाक में और उससे भी कम बारीक पुद्गल जीभ में पहुंचाता है। अर्थात् जिन पुद्गलों में सरसता अधिक होती है और रूक्षता कम होती है, ऐसे पुद्गल आंखों को मिलते हैं। यह सब कार्रवाई तैजस शरीर द्वारा आपके शरीर में होती है लेकिन आप उसे देखते नहीं हैं। लेकिन यह तो आप देखते ही हैं कि तर चीज खाने से आंखों का तेज बढ़ता है और बहुत चटपटी चीज खाने से आंखों को कष्ट पहुंचता है। यह सब तैजस शरीर का काम है। लेकिन अब यह देखना है कि आपने जो कुछ भी खाया है, वह किस मनोभावना से खाया है। खाकर और उसके सिवाय पुद्गल आंख, कान, नाक और जीभ ने पाकर क्या किया है? इस बात का हिसाब कार्मण शरीर रखता है। - भगवती सूत्र व्याख्यान ५३ 888888
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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