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________________ बात सुनकर, निचोड़ निकाल कर निर्णय देना ही न्याय है। धर्म भी इसी बात का समर्थन करता है। धर्म का आदेश है कि दुराग्रह के वश होकर लड़ाई-झगड़ा करना और बुद्धि का दुश्मन बनना उचित नहीं है। ___ मतलब यह है कि एक पक्ष को पकड़कर दूसरे पक्ष का विरोध करना ही लड़ाई की जड़ है। इसीलिए ज्ञानी पुरुष किसी एक पक्ष को पकड़कर आग्रहशील नहीं होते और सब पक्षों पर यथायोग्य विचार करते हैं। वे हाथी के एक-एक अंग के आधार पर भिन्न-भिन्न रूप में हाथी बतलाने वाले सब लोगों को उस अंश में सत्य मानते हैं और इस आंशिक सत्य के समन्वय में सम्पूर्ण सत्य का स्वरूप देखते हैं। ___ धर्म से शान्ति मिलनी चाहिए, लेकिन लोगों ने उसका दुरुपयोग करके उसे अशान्ति फैलाने वाला बना दिया है। आज धर्म के नाम पर जो अशान्ति फैल रही है, वह अन्य कारणों से होने वाली अशान्ति से क्या कम है? हिन्दू और मुसलमानों को लीजिए, जैनों-जैनों को देखिए, ईसाई-ईसाई के व्यवहार पर दृष्टि डालिए, सर्वत्र खींचतान और अशान्ति का साम्राज्य दिखाई देगा। इस अशान्ति को देखकर बहुत से लोग धर्म से ही घृणा करने लगते हैं और कहते हैं संसार को धर्म की आवश्यकता नहीं। इस प्रकार का आन्दोलन भी प्रारंभिक रूप में आरंभ हो गया है। लेकिन यह विचारहीनता का परिणाम है। यह आन्दोलन कोरे मस्तिष्क की चंचलता है। हृदय की बात दूसरी है। हृदय का विकास होने पर लोग धर्म के लिए आग में जलने को तैयार हो जाएंगे, लेकिन धर्म न छोड़ेंगे। इस बात की सत्यता के प्रमाण यूरोप का इतिहास भी उपस्थित करता है। यूरोप में कई लोगों से कहा गया कि तुम अपनी मान्यता बदल लो, अन्यथा तुम्हें आग में जला दिया जायगा। लोग आग में जल गये मगर उन्होंने अपनी मान्यता बदलना स्वीकार न किया। सिर्फ मस्तिष्क के विचार वाला ऐसा नहीं कर सकता। मस्तिष्क कहता है-छोड़ो निगोड़े धर्म को, जल मरने में क्या रक्खा है? लेकिन हृदय धर्म के लिए जल मरने में संकोच नहीं करेगा। इस प्रकार कई लोग धर्म को अशान्ति का कर्ता समझते हैं, लेकिन कइयों ने इसके लिए मरना भी स्वीकार किया है। वास्तव में धर्म बहिष्कार के योग्य चीज नहीं है। रही धर्म के नाम पर लड़ाई होने की बात, सो ऐसी लड़ाइयों में धर्म का नाम चाहे दिया जाय मगर लड़ाई का असली कारण लोगों में विद्यमान दुर्भावना ही है। लोग किसे आधार बनाकर नहीं लड़ते? राष्ट्रीयता को आधार बनाकर क्या कम खून-खच्चर होता है? फिर भी राष्ट्रीयता और - भगवती सूत्र व्याख्यान ३५
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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