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________________ होते हैं, उनका उपयोग क्रोध में होता है, तब वह क्रोधी हैं मानी, मायी और लोभी नहीं हैं। इस विषय में एक उदाहरण और लीजिए। जिसे लाख रुपये मिलने वाले हों या जिसके पास लाख रुपये थे, वह लोकव्यवहार में लखपति कहलाता है। लेकिन ऋजुसूत्रनय उसे लखपति नहीं मानता। जिसके अधिकार में वर्तमान काल में लाख रुपये हों उसी को वह लखपति मानता है। लाख रुपये किसी के पास भले ही थे या होंगे लेकिन अगर वर्तमान में नहीं हैं, फिर भी उसे लखपति कहा जाय तो फिर चाहे जिसे लखपति कहा जा सकता है। इस प्रकार ऋजुसूत्रनय उसे लखपति नहीं मानता, चाहे व्यवहार में उसे लखपति कहा जाय। जैनधर्म अनेकान्तवादी है। वह सभी बातों का समाधान कर सकता है। लेकिन आज हम लोगों में ही बैंचातानी चल रही है। अगर यह बैंचातानी छोड़कर देखें तो जैनधर्म वस्तु के किसी भी अंग का विरोधी नहीं है। जब एक पक्ष का विरोध करके, दूसरे पक्ष की ही स्थापना की जाती है, तब विरोध उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, अनेक अंग मिलकर हाथी का पूर्ण शरीर कहलाता है। अब कोई आदमी हाथी का पांव ही पकड़ कर कहता है कि हाथी खंभे के समान ही होता है, हमने टटोलकर देख लिया है। दूसरा सूंड पकड़ कर कहता है हाथी डगले बांह, मुद्गर सरीखा होता है। तीसरा पूंछ का स्पर्श करके कहता है हाथी रस्सी सरीखा होता है। चौथे ने कान पकड़ कर कहा-हाथी सूप-सा होता है। पांचवे ने कहा-हाथी कोठी के समान होता है, इत्यादि। ऐसे समय में ज्ञान कहता है-मेरा अभाव होने से ही ये सब लोग लड़ रहे हैं और एक दूसरे की बात को मिथ्या समझ रहे हैं। यद्यपि ये सब सच कह रहे हैं, लेकिन अपूर्ण ज्ञान (अज्ञान) के कारण दूसरों की आपेक्षिक सत्य बात को भी.असत्य कहकर स्वयं असत्यवादी बन रहे हैं। जो आदमी हाथी को खंभे सरीखा बतलाता है, वह ठीक कहता है, क्योंकि हाथी के पैर खंभे सरीखे ही होते हैं। लेकिन जो भाई हाथी को (डगले की बाँह) मुद्गर सरीखा कहता है, वह भी झूठ नहीं कहता, क्योंकि हाथी की सूंड ऐसी होती है। इसी प्रकार दूसरों की कही बातों पर अगर विभिन्न दृष्टियों से विचार किया जाय तो सारा झगड़ा ही मिट जाय। प्रत्येक मनुष्य के लिए, जो निष्पक्ष होकर सत्य का प्रकाश करना चाहता है, यही उचित है कि सब प्रश्नों पर यथोचित विचार करके न्याय करे। किसी एक ही पक्ष का दुराग्रह करना उचित नहीं है। वादी और प्रतिवादी की ३४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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