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________________ संख्येय समयाधिका स्थितिः, असंख्येय समयाधिका स्थितिः, तत्प्रायोग्योत्कर्षिक्या स्थित्या सप्तविंशतिमंगा भणितव्याः। प्रश्न-भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में के एक-एक नारकावास में रहने वाले नारक जीवों के कितने स्थितिस्थान कहे हैं ? अर्थात् एक एक नारकावास के नारकियों की कितनी-कितनी उम्र है ? उत्तर-हे गौतम! उनके असंख्य स्थितिस्थान कहे हैं। वह इस प्रकार हैं-जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, वह एक समय अधिक, दो समय अधिक-इस प्रकार यावत् जघन्य स्थिति असंख्यात समय अधिक तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति भी। (यह सब मिलकर असंख्यात स्थितिस्थान होते हैं। प्रश्न-भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकवासों में के एक-एक नारकावास में कम से कम (जघन्य) स्थिति में वर्तमान नारकी क्या क्रोधोपयुक्त हैं? मानोपयुक्त है? मायोपयुक्त है या लोभोपयुक्त हैं ? उत्तर-गौतम! वे सभी क्रोधोपयुक्त होते हैं। अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और एक मानोपयुक्त है, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और मानोपयुक्त होते हैं, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और एक मयोपयुक्त होते हैं, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और मायोपयुक्त होते हैं, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और एक लोभोपयुक्त होता है, अथवा बहुत क्रोधोपयुक्त और लोभोपयुक्त होते हैं। अथवा बहुत क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होता है, अथवा बहुत क्रोधोपयुक्त एक मायोपयुक्त और बहुत मायोपयुक्त होते हैं, अथवा बहुत क्रोधोपयुक्त तथा बहुत मानोपयुक्त और एक मायोपयुक्त, अथवा बहुत क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त तथा मायोपयुक्त होते हैं। इस प्रकार क्रोध, मान और लोभ के साथ दूसरे चार भंग करने चाहिएं। और इसी प्रकार क्रोध, माया और लोभ के साथ भी चार भंग करने चाहिएं। फिर मान, माया और लोभ के साथ क्रोध द्वारा आठ भंग करने चाहिएं। तथा इन सबको, क्रोध को छोड़े बिना इस प्रकार सत्ताईस भंग जानने चाहिएं। प्रश्न-हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में के एक-एक नारकावास में एक समय अधिक जघन्य स्थिति में वर्तमान नारकी क्या क्रोधोपयुक्त हैं? मानोपयुक्त हैं? मायोपयुक्त है? या लोभोपयुक्त हैं? उत्तर-हे गौतम! उनमें कोई-कोई क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त मायोपयुक्त और लोभोपयुक्त हैं। अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त और लोभपयुक्त है। अथवा कोई-कोई क्रोधोपयुक्त और मानोपयुक्त, अथवा कोई-कोई क्रोधोपयुक्त और बहुत-से मानोपयुक्त हैं। इत्यादि प्रकार से अस्सी भंग २६ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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