________________
है ? अतएव भगवान् को पूज्य मानने वालों को चाहिए कि वे उनके माता-पिता को न भूलें, जिन्होंने भगवान् महावीर को संस्कारसंपन्न बनाने का प्रयत्न किया है। ऐसा करने से ही कृतज्ञता ठहरेगी ।
लोग प्रायः गर्भवती स्त्री का कोई ध्यान नहीं रखते। गर्भवती स्त्री गंदा भोजन करे, गंदी हंसी-मसखरी करे, और गंदा व्यवहार करे तो क्या गर्भ पर बुरा प्रभाव न पड़ेगा? पुरुष, गर्भवती स्त्री से भी संसार - व्यवहार करने से बाज नहीं आते, इसका असर गर्भ पर बुरा पड़ता है। ऐसा व्यवहार तो पशु भी नहीं करता। मगर मनुष्य कहलाने वाले जीव अपने विवेक को भूल कर विषयवासना के कीड़े बने रहते हैं ।
कदाचित् धर्मशास्त्र पर और विज्ञान पर विश्वास न हो तो भी डाक्टर की बात तो मानो ! डाक्टर का यह निश्चित मत है कि जो पुरुष स्त्री से मैथुन करते हैं, वे गर्भ के बालक पर घोर अत्याचार करते हैं। ऐसा करने वाले लोग पिशाचों से भी गये बीते हैं ।
मतलब यह है कि धर्मशास्त्र और साइंस दोनों स्पष्ट बतलाते हैं कि गर्भवती स्त्री के सामने जो दृश्य होता है, उसका असर गर्भ पर भी पड़ता है। गर्भवती के सामने जो शक्ल-सूरत होती है, उसका प्रभाव गर्भ की संतान पर पड़े बिना नहीं रहता। इसी प्रकार गर्भवती स्त्री जो सुनती या सोचती है, उसका असर भी गर्भ पर अवश्य पड़ता है। धर्म कामना और पुण्य कामना काफल मोक्ष कामना और स्वर्ग कामना है । यद्यपि कामना मात्र वर्जित है, पर यहां कामना का अर्थ दूसरा ही है।
यहां यह प्रश्न उपस्थित होता है कि अगर स्वर्ग की भी कामना नहीं करनी चाहिए तो फिर शास्त्र में धर्म-कामना, स्वर्ग-कामना तथा मोक्षकामना का पाठ क्यों आया है? इसका उत्तर यह है कि एक आदमी पथ्य खाता है । ऐसे आदमी के लिए यह कहा जाता है कि यह निरोग रहने की कामना करता है। और जो आदमी कुपथ्य खाता है, उसके संबंध में यह कहा जाता है कि यह रोगी बनना चाहता है। इसी प्रकार धर्म सुनने वाले के प्रति, धर्मश्रवण करने के कारण यह कहा जाता है कि यह आत्मा स्वर्ग और मोक्ष का कामी है । गर्भ का बालक स्वर्ग और मोक्ष की कामना करता है, कामना और कांक्षा में अन्तर है । अत्यन्त बढी हुई कांक्षा, कामना कहलाती है। जैसे एक तो प्यास का लगना और दूसरे प्यास का अत्यधिक बढ जाना । प्यास बढ जाने पर पानी के लिए बेचैनी हो जाती है । पहली कांक्षा थी तब बेचैनी नहीं थी। जब पानी के बिना नहीं रहा जाता तब कामना हुई ।
२३८ श्री जवाहर किरणावली