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________________ है? वास्तव में गंध उस बिल में गई, जहां चिऊंटी थी। शक्कर के गिरते ही शक्कर की गंध सब जगह फैल जाती है। उस गंध के सहारे कीड़ी बिल से बाहर निकल कर चली और जिधर से अधिक गंध आने लगी, उसी और चल पड़ी। चलते-चलते वह शक्कर के पास पहुच गई। इस प्रकार गंध के द्वारा कीड़ी ने इतना पता लगा लिया, परन्तु आप भी क्या इतना पता लगा सकते हैं? नहीं! क्यों? इसका कारण यह है कि चिऊंटी में यद्यपि मन नहीं है, तथापि अध्यवसाय है और वह एकाग्र है। इसी कारण उसे जल्दी गंध का पता लग जाता है। आप का अध्यवसाय बंटा रहता है। आपके मन में बड़े-बड़े विचार उत्पन्न होते रहते हैं। इसलिए आपको पता नहीं लगता। पिछली रात में जाग जाने पर आपको जो शब्द सुनाई देते हैं वे दिन में क्यों नहीं सुनाई देते? इसका कारण भी यही है कि पिछली रात में व्याघात • नहीं होते और अध्यवसाय एकाग्र रहता है। इसी प्रकार चिऊंटी का अध्यवसाय एकाग्र रहने से उसे गंध का ज्ञान जल्दी हो जाता है। तात्पर्य यह है कि गर्भ के बालक का मन इधर-उधर नहीं डोलता। अतएव माता के ध्यान में जो बात आती है, वह गर्भस्थ बालक के ध्यान में भी आ सकती है। लोग सन्तान प्राप्त करने के लिए न जाने कितनी खटपट किया करते हैं, परन्तु सन्तान पाकर उसे संस्कारयुक्त बनाने में लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं करते। आप यह जानते हैं कि माता के विचारों एवं चेष्टाओं का प्रभाव गर्भ के बालक पर पड़ता है। क्या माता उसे सुधारने की चेष्टा करती है? अगर आप यह चेष्टा नहीं करते तो सुधरी हुई सन्तान कैसे पा सकते हैं? आपके सामने अच्छी से अच्छी वस्तु मौजूद है, उसे लेना न लेना आपकी इच्छा पर निर्भर है। भगवान् महावीर के भक्त भगवान् की जय बोलने से पहले महारानी त्रिशला और महाराज सिद्धार्थ की जय क्यों बोलते हैं? प्रयोजन तो भगवान् से है, फिर इनकी जय बोलने का क्या प्रयोजन है? मगर ऐसा कृतघ्न कौन होगा जो भगवान् को तो माने और उनके माता-पिता को भुला दे? कन्या का किसी वर के साथ विवाह कर देने पर अगर कन्या, उस वर के माता-पिता के प्रति अनुगृहीत न हो, उन्हें वर से भी पहले पूज्य न माने तो वह कन्या कैसी समझी जायगी? यह बात आप लोग जानते ही हैं। इसी प्रकार भगवान् महावीर में जो शक्ति आई, उसका कुछ भी श्रेय उनके माता-पिता को नहीं - भगवती सूत्र व्याख्यान २३७
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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