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________________ आप के मां-बाप मनुष्य थे, इसी से आप मनुष्य हुए हैं। यदि वे जानवर होते तो आप भी जानवर होते। यानि आपको मनुष्यत्व देने वाले आपके मां-बाप हैं। उन्होंने आपको मनुष्य बनाया है और उनकी दी हुई मनुष्यता-जीवन के अन्त तक कायम रहेगी। आप बीच में पशु मत बनो पशुओं का-सा व्यवहार मत करो। अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! जीव जब माता के गर्भ में होता है, तब उसे मल, मूत्र, कफ, नाक का मैल (सेड़ा), वमन (कै) और पित्त होता है या नहीं होता? इस का उत्तर भगवान् देते हैं-हे गौतम! ऐसी बात नहीं है। अर्थात् गर्भस्थ जीव के मल-मूत्र आदि नहीं होते। गौतम स्वामी इसका कारण पूछते हैं-भगवन् इसका क्या कारण है? हम लोग जो आहार करते हैं, उससे मल-मूत्र आदि भी बनते हैं, तो गर्भ में रहे हुए जीव के आहार से भी मल-मूत्र बनने चाहिए। मगर आप उनका निषेध करते हैं, तो इसका क्या कारण है? __ भगवान् उत्तर देते हैं-गौतम! गर्भस्थ जीव जो आहार खाता है, वह सब उसकी इन्द्रियां आदि बनने के काम आता है। सारे आहार से उसके शरीर के विभिन्न भाग बनते हैं। इसलिए मल-मूत्र नहीं बनते। गर्भस्थ जीव माता के रस का आहार करता है। रसभाग वही कहलाता है, जिससे खल भाग अलग हो गया हो। माता जो आहार करती है, वह दो रूपों में विभक्त होता है-खल भाग में और रस भाग में। गर्भ का जीव रस भाग का ही आहार करता है, अतः उसके मल मूत्र आदि हो ही नहीं सकते। इसके अनन्तर गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्, हम लोग जैसे कवलआहार करते हैं अर्थात् ग्रास के रूप में मुखे द्वारा भोजन करते हैं, क्या उसी प्रकार गर्भस्थ जीव भी कवलाहार करता है? भगवान् उत्तर देते हैं-गौतम, यह बात नहीं है। गर्भ में रहा हुआ जीव मुख द्वारा आहार-कवलाहार नहीं कर सकता। तब गौतम स्वामी पूछते हैं-प्रभो! इसका कारण क्या है ? भगवान् उत्तर देते हैं-हे गौतम! गर्भ का जीव सारे शरीर से आहार लेता है, इसलिए वह कवलाहार नहीं कर सकता। वह जीव सम्पूर्ण शरीर से आहार करता है, सम्पूर्ण शरीर से उसे परिणमाता है, सम्पूर्ण शरीर से उच्छवास लेता है, सम्पूर्ण शरीर से निःश्वास लेता है और कदाचित् लेता है, कदाचित् नहीं भी लेता। गर्भ का जीव. सारे शरीर से किस प्रकार आहार लेता है, उसका स्पष्टीकरण यह किया गया है कि एक मातृ जीव रसहरणी नाली होती है। भगवती सूत्र व्याख्यान २१६
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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