________________
विग्रहगति और देवच्यवन
मूलपाठप्रश्न-जीवे णं भंते! किं विग्गह गइ समा वण्णए, अविग्गह गइ समावण्णए?
उत्तर-गोयमा! सिय विग्गह गइ समावण्णगे, सिय अविग्गह गइ समावण्णगे, एवं जाव वेमाणिए।
प्रश्न-जीवा णं भंते! किं विग्गह गइ समावण्णगा, अविग्गह गइ समावण्णगा?
उत्तर-गोयमा! विग्गह गइ समावण्णगा वि, अविग्गह गइ समावण्णगा वि!
प्रश्न- नेरइया णं मंते! किं विग्गह गइ समावण्णगा, अविग्गह गइ समावण्णगा?
उत्तर-गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा अविग्गह गइ समावन्नगा। अहवा अविग्गह गइ समावन्नागा, य विग्गह गइ समावण्णगेय। अहवा अविग्गह गइ समावनगा य, विग्गह गइ समावण्णगा य। एवं जीव-एगिदियज्जो तियमंगो।
प्रश्न-देवे णं भंते! महिड्ढिए, महज्जुइए महब्बले, महायसे, महेसक्खे, महाणुभावे, अवि उक्कंतियं चयमाणे किंचिकालं हिरि वत्तियं, दुगंछ वत्तियं, परिसह वत्तियं आहारं नो आहारेइ। अहे णं आहारेइ, आहारज्जिमाणे, आहारिये, परिणामिज्ज माणे परिणामिए, पहिणे य आउए भवइ । जत्थ उववज्जइ तं आउयं पडिसंवेदेइ तं जहा तिरिक्ख जोणियाउयं वा, मणुस्साउयं वा?
उत्तर-हता, गोयमा! देवे णं महिड्ढिए जाव मणुस्साउयं वा। २०० श्री जवाहर किरणावली.
99999900000000000000000000