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________________ के आंसू आ जाते हैं। अभ्यास हो जाने पर वह रोती-पीटती नहीं है। पुत्र की तरह आत्मा के अधिक दूर पड़ जाने पर लोग कहते हैं-'अमुक व्यक्ति मर गया। वास्तव में वह पहले जिस ढंग में था, उस ढंग में वह अब वापिस नहीं मिल सकता, इसीलिए लोग रोते-चिल्लाते हैं। मगर ज्ञानी पुरुषों का कथन है कि रोना-चिल्लना और छाती पीटना वृथा है। आत्मा मरा नहीं है। उसने एक रूप छोड़ कर दूसरा रूप ग्रहण कर लिया है। ___ एक बात ध्यान देकर खूब विचारने की है। अगर आत्मा में काया बदलने का स्वभाव न होता तो तुम्हारा पुत्र तुम्हारे यहां कैसे उत्पन्न होता? उसका जन्म होने पर तुम जब खुशी मना रहे थे, तब कोई रो भी रहा होगा? इस प्रकार की अदल-बदल सदा से होती आई है। प्रकृति का यही नियम है। एक बात और है। अगर आत्मा सचमुच मर ही गया तो अब रोने से क्या लाभ? रोने से क्या वह लौट आएगा? नहीं तो उस एक के पीछे अपना भी बिगाड़ क्यों करते हो? आर्तध्यान करके क्यों कर्मबंध करते हो ? उदाहरणार्थ-मान लीजिए, एक वृक्ष में दो डालियां हैं। पाला (हिम) पड़ने के कारण उनमें से एक डाली जल गई। एक हरी रही। इसके अनन्तर ही बसन्त ऋतु आई। तब हरी डाली में फूल-पत्ते आएंगे या सूखी डाली में ? 'हरी में!' उस समय हरी डाली को पुष्प-पत्रों से सुशोभित होना चाहिए या अपनी साथिन के रंज मे सूख जाना चाहिए? 'हरी होना चाहिए! जिस प्रकार एक डाली के सूख जाने पर दूसरी डाली नहीं सूखती, उसी प्रकार, ज्ञानीजन कहते हैं-एक की मृत्यु हो जाने पर तुम क्यों अपना वृथा बिगाड़ करते हो? क्या तुम डाली से भी गये-गुजरे हो? आप कह सकते हैं कि डाली अज्ञानी है, इसलिए वह नहीं रोती, क्योंकि विशेष ज्ञान के बिना दुःख-शोक नही होता। तो क्या इसका यह अर्थ समझा जाय कि रोना ज्ञान का फल है? जो बुद्धि रोने का आविष्कार करती है,उसे रोना मिटाने के कार्य में क्यों नहीं लगाते? क्या समझदारी का यह नतीजा है कि रो-रो कर आत्मा का भव-भवान्तरों नाश किया जाए? आग लगाने वाला मूर्ख होता है, जो उसे शान्त करता है वह बुद्धिमान कहलाता है। जो रोना बढावे वह अज्ञान है और जिससे रोना कम हो वही ज्ञान है। ऐसा ज्ञान शास्त्र से प्राप्त होता है। और आत्मा की नित्यता का प्रतिवादन करने के लिए ही शास्त्र में नारकी आदि जीवों की तथा उनकी वेदनाओं की विवेचना की गई है। B8888888888888888888888 - भगवती सूत्र व्याख्यान १६६
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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