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________________ विद्याविनयसम्पन्ने, ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च, पण्डिताः समदर्शिनः ।। - जो लोग समझदार अर्थात् पंडित हैं, वे विद्या एवं विनय से सम्पन्न ब्राह्मण, गौ, हाथी, चाण्डाल और कुत्ते में समदृष्टि वाले होते हैं। यह ठीक है कि सिर पैर नहीं हो सकता और पैर सिर नहीं हो सकता। मगर पैर नीचे हैं, इसलिए उनसे घृणा करना बुद्धिमानी नहीं है। कहावत -पानी में रहना और मगर से बैर! भंगी-महत्तर के बिना क्षण भर काम नहीं चलता और उसीसे घृणा की जाय, यह कैसी विपरीत बात है? स्वदेश के मनुष्यों एवं उपाधियों से तो घृणा की जाय और विदेशी मनुष्यों और उपाधि यों से प्रेम किया जाय, यह कौनसा ज्ञान है? लोग जब अपने आपे से गिर गये तो संसार-व्यवहार में भी अगर गिर जाएं तो आश्चर्य की कौन-सी बात है ? दूसरे लोग तुम्हारा उपहास करते हैं। वे सोचते हैं - देखो, यह स्वदेशी मनुष्यों से घृणा करने वाले लोग भी मनुष्य कहलाते हैं! अगर तुम्हारी घृणा और हाय-हाय धर्म की प्राप्ति होने पर भी नहीं छूटी तो फिर वह कभी नहीं छूटने की! अब पुरानी एवं निराधार परम्पराओं के गीत मत गाओ, उनसे इस युग में काम नहीं चल सकता। मेरी बात तुम्हें जंचे या न जंचे, मगर सत्य और हितकर बात कहना मेरा कर्तव्य है। अन्तस्थल में उत्पन्न होने वाले अन्तर्वाद को तुम्हारे कानों तक पहुंचाना मेरा फर्ज है। पॉलिसी ही पॉलिसी में ऊपरी दिखावट करते-करते धर्म की प्रतिष्ठा नष्ट हो गई। जब तक धर्मी कहलाने वालों में सद्भावना का उदय नहीं होता, तब तक धर्म की प्रतिष्ठा नहीं जम सकती। अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! जब जीव की स्थिति नरक में पूरी हो जाती है तो वह एक भाग से एक भाग, एक भाग से सर्व भाग, सर्वभाग से एक भाग या सर्वभाग से सर्वभाग के आश्रित निकलता है? भगवान् ने फरमाया- उत्पत्ति के संबंध में जो बात कही गई, वही निकलने के संबंध में भी समझ लेना चाहिए। तब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! नरक से निकलता हुआ नारकी देश से देश का आहार करता है या किस प्रकार? भगवान् ने उत्तर दिया-इस विषय में भी पहले की ही तरह समझना चाहिए। अर्थात् देश से देश का नहीं, देश से सर्व का नहीं, सर्व से देश का अथवा सर्व से सर्व का आहार करता है। १६४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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