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________________ कर्म के प्रभाव से ही जीव को नरक में जाना पड़ता है। अगर कर्म का बंध न हुआ होता तो जीव नरक में न जाता। सोना परतंत्र होने पर ही ठोका-पीटा जाता है। गढ़े हुए सोने को सभी पकड़ना चाहते हैं। कोई कहता है-यह कनफूल है, कोई कहता है-यह मेरा कड़ा है, आदि असल सोना गढ़ा न जाता तो वह अपने असली रूप में सोना ही बना रहता। आज अनेक घरों में गढे हुए सोने के लिए ही प्रायः झगड़ा होता है। मतलब यह है कि अगर आत्मा को कर्म रूप उपाधि नहीं लगती तो वह अपने असली स्वरूप में रहता। जब कर्म रूप उपाधि लगती है तब उसके अनेक आकार बन जाते हैं। इन अलग-अलग घाटों के कारण जीवों का चौबीस दंडकों के रूप में विभाग किया गया है। अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! नारकी जीव आहार करते हैं या नहीं, अगर करते हैं तो किस प्रकार करते हैं? भगवन् उत्तर देते हैं-गौतम! सर्वभाग से एक देशाश्रित आहार करते हैं और सर्वभाग से सर्वभागाश्रित आहार करते हैं। यही बात वैमानिकों तक समझना चाहिए। गौतम स्वामी के यह पूछने पर कि नारकी आहार करते हैं या नहीं; भगवान् ने फरमाया है कि आहार के बिना शरीर नहीं टिक सकता। आहार अन्न है और वह प्राण के लिए आवश्यक है। जहां प्राण है वहां आहार है और जहां आहार है वहीं प्राण है। चाहे दिखने योग्य हो या सूक्ष्म हो, मुख से खाया गया हो या रोम से अथवा श्वास द्वारा ग्रहण किया गया हो; किन्तु आहार के बिना शरीर नहीं टिक सकता। भगवान् ने फरमाया है-सर्व से देश-आश्रित और सर्व से सर्व-आश्रित आहार किया जाता है। यहां यह शंका की जा सकती है कि देश से सर्वाश्रित आहार करते तो ठीक था, क्योंकि मुख रूप एक देश से थाली में पड़ी हुई सब रोटियां खा ली जाती है; किन्तु सर्व से देश-आश्रित आहार कहा, सो यह कैसे संभव है? यह शंका निर्मूल समझनी चाहिए, क्योंकि सर्व से देश-आश्रित आहार का शास्त्रीय विधान ही समीचीन है। हम लोग जो कुछ भी आहार रूप में ग्रहण करते हैं, उसमें से कुछ तो हमारा आहार बनता है और कुछ मल-मूत्र आदि के रूप में बाहर निकल जाता है। जो निकल जाता है, वह वास्तव में आहार नहीं है। साधारणतया कहा जाता है कि भक्षण किये हुए पदार्थों में से दो भाग निकल जाते हैं और एक भाग उपयोगी होता है। आधुनिक विज्ञान से यह प्रतीत हुआ है कि मनुष्य वास्तविक आवश्यकता-भूख से कई गुना अधिक भोजन करता है। लोगों को ज्ञान नहीं है कि उनके शरीर को दर असल - भगवती सूत्र व्याख्यान १६१
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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