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________________ चिकास कैसी है? यह स्पष्ट करने के लिए टीकाकार कहते हैं: स्नेहाभ्यक्तशरीरस्य रेणुना श्लिष्यते यथा। गात्रं रागद्वेष क्लिन्नस्य, कर्मबन्धो भवत्येवम् ।। अर्थात्-जैसे कोई पुरुष शरीर में तेल चुपड़ कर आंधी में बैठ जाय तो उसका शरीर रेत से भर जाता है, इसी प्रकार जो जीव राग-द्वेष से भरा है, उसे कर्मबंध होता है। जैसे तेल लगे शरीर पर रज लगकर वह मैलरूप हो जाती है, इसी प्रकार जीव में राग-द्वेष रूपी चिकनाई है और कर्मरज सर्वत्र भरी हुई है ही; इसी से वह जीव के साथ चिपक जाती है। सिद्धों के राग-द्वेष की चिकनाई नहीं है, अतएव कर्मरज उन्हें नही लगती। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आत्मा और परमात्मा में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। अन्तर सिर्फ राग-द्वेष की स्निग्धता का है। यही स्निग्धता कर्मबंध का कारण है। जब विशिष्ट साधना से आत्मा की राग-द्वेष-स्निग्धता मिट जाती है, तब आत्मा ही परमात्मा बन जाता है। राग-द्वेष के मिटाने का उपाय क्या है? उपाय कोई कठिन नहीं है। संसारी जीव किसी वस्तु को पाकर हर्ष से उन्मत्त हो जाता है, किसी को पाकर विषाद के गहरे सागर में गोते खाने लगता है, किसी बात से अपमान और किसी से सम्मान की कल्पना करता है। अगर, यह स्वभाव छूट जाय और समभाव में स्थित रहने का अभ्यास किया जाय तो राग-द्वेष का अन्त आ सकता है। गौतम स्वामी ने यह प्रश्न इसलिए किया है कि कई दर्शनों वाले यह मानते हैं कि कर्म, जीव के साथ बंधे हुए नहीं है, ऊपर ऊपर से लगे हैं, एकमेक नहीं हो रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि अगर जीव और कर्म एकमेक हो जाएं तो जीव का जीवत्व ही मिट जाए। इस मत पर प्रकाश डलवाने के निमित्त ही गौतम स्वामी ने प्रश्न किया है कि-भगवन! जीव और कर्म ऊपर-ऊपर से ही मिले हैं या अन्दर से भी मिले हैं? इसके अतिरिक्त गौतम स्वामी के प्रश्न का एक उद्देश्य यह भी है कि जीव अमूर्त और चेतनामय हैं तथा कर्म मूर्त एवं जड़ है। इन दो विरोधी स्वभावों के होते हुए भी दोनों किस प्रकार एक-दूसरे से संबद्ध होते हैं? भगवान् ने जो उत्तर दिया है, उसका आशय यह है कि जीव और कर्म ऊपर-ऊपर से नहीं मिले हैं, किन्तु दूध और पानी की तरह मिले हुए हैं अथवा जैसे दूध में घी सर्वत्र है, उसी प्रकार जीव में कर्म भी सर्वत्र लगे हुए - भगवती सूत्र व्याख्यान १७६
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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