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________________ रुपया ऐसे काम में खर्च न करके किसी वेश्या को दे दिया तो उसका विनियोग ठीक नहीं हुआ। अगर आप समझ जाएंगे कि रुपया संग्रह है और मैं उसका संग्राहक हूं तो आप उसका दुरुपयोग नहीं करेगे और उसके गुम जाने पर शोक भी नहीं करेंगे। आप समझेंगे कि पैसा कमाना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात उस का उपयोग करना है । यहां एक प्रश्न हो सकता है कि अगर जीव, जड़-पुद्गलों का संग्रहकर्त्ता है, तो सिद्ध जीव पुद्गलों का संग्रह क्यों नहीं करते? अगर निरंजन, निराकार सिद्ध जीव पुद्गलों का संग्रह नहीं करते तो सिद्धांततः यह बात कैसे कही जा सकती है कि जड़ को जीव ने संग्रह कर रक्खा है? इस प्रश्न के उत्तर में शास्त्र कहता है : जीवा कम्मसंगहिया । अजीव को पकड़ने की आदत आत्मा की असली नहीं है, वरन् जीव में एक विकारी आदत पैदा हो गई है। इसी विकारी आदत या वैभाविक अवस्था के कारण जीव जड़ का संग्रह करता है। आत्मा के इस विभाव को कोई-कोई त्रिगुणात्मिक प्रकृति कहते हैं और जैन धर्म उसे कर्त्ता का आठ कर्म कहता है। इन आठ कर्मों की विकारी आदत के वश होकर ही जीव अजीव को पकड़ता है। कर्म का अर्थ है- जो किया जाय, 'क्रियते इति कर्म ।' कर्म भी जीव के किये हुए हैं। कर्म के होने से ही जीव अजीव का संग्रह करता है। कर्म न हो तो वह अजीव का संग्रह न करे। सिद्ध जीव इसी कारण अजीव का संग्रह नहीं करते । यह आठ प्रकार की लोकस्थिति बतलाई गई । इसमें दो बातों पर विचार करने की आवश्यकता है। प्रश्न यह है कि इस विषय में छह बातें कहने से ही काम चल सकता था फिर आठ बातें कहने का क्या प्रयोजन है ? छह बातों से काम चल जाने पर भी आठ बातें कही हैं, इससे शास्त्र में दोष हुआ या नहीं ? शास्त्र में 'अजीवा जीव पइट्टिया और अजीवा जीव संगहिया' यह दो बातें कहीं हैं, परन्तु इन दोनों के अर्थ में तो कोई मौलिक अन्तर नहीं दिखाई देता। इसी प्रकार 'जीवा कम्म पइट्ठिया' और 'जीवा कम्मसंगहिया' इन दोनों में भी कोई खास अन्तर नजर नहीं आता । इसका उत्तर यह है कि पहले वाले में आधार आधेय संबंध को बतलाया गया है और अगले में संग्राहय - संग्राहकभाव प्रदर्शित किया गया है। अतः दोनों वाक्य अलग-अलग अर्थ बतलाते हैं। भगवती सूत्र व्याख्यान १७५
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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