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________________ से सर्वथा नहीं बच सकते, तो भी कम से कम मन में जोड़ने की भावना तो करो। ध्यान में इतनी बात तो रक्खो कि मुझ में बिखेरने और जोड़ने की दोनों शक्तियां विद्यमान हैं। आप यह तो देखते हैं कि हिंसा, झूठ के बिना काम नहीं चल सकता, लेकिन यह क्यों नहीं देखते कि हम हिंसा से जीवित हैं या अहिंसा से जीवित हैं? आपकी माताने आप का पालन हिंसा की भावना से किया है या अहिंसा की भावना से? जगत् का व्यवहार सत्य से चलता है या असत्य से? आपको भूख लगी हो, फिर भी आप कहें कि मुझे भूख नहीं है तो कब तक काम चलेगा? वास्तव में सब काम सत्य से ही चल रहे हैं, मगर आपने असत्य का आश्रय लेकर अपनी भावना निर्बल बना ली है। __मतलब यह है कि हमें सब प्रकार के भ्रमों का परित्याग कर के परमार्थ तत्व का विचार करना चाहिए। सत्य का अन्वेषण करने वाला ही कल्याण का भागी होता है। __मूल बात यह थी कि अजीव, जीव पर प्रतिष्ठित है जैसे पानी आधेय और पात्र आधार है, बिना आधार के आधेय नहीं रह सकता, इसी प्रकार संसार जिस आकार में दृष्टिगोचर होता है, उस आकार का मूलाधार जीव है। अर्थात अजीव जीव की सत्ता में है। ... पुद्गल शब्द का अर्थ ही मिलना और बिखरना है। पुद्गल में स्थायित्व नहीं है। पुद्गल में उत्कृष्ट स्थिरता सत्तर (70) कोड़ाकोड़ी सागरोपम तक की है, मगर यह भी जीव की शक्ति से ही है। जीव पदगल को इतने समय तक ठहरा रख सकता है। आत्मा सहित मानव शरीर सौ वर्ष तक भी टिका रहता है, परन्तु आत्मविहीन शरीर कितने दिन तक ठहर सकता है ? शरीर तो वही है, मगर उसे टिका कर रखने वाला चला गया। इसी कारण अब वह नहीं टिक सकता। ० प्रश्न होता है अगर जीव ही अजीव को टिकाए रखता है तो जीव शरीर को सौ वर्ष तक ही क्यों टिकाकर रखता है? अधिक क्यों नहीं टिकाता ! कदाचित् यह कहा जाय कि जीव की इच्छा सौ वर्ष से अधिक टिकने की नहीं है, मगर मरना कौन चाहता है? सौ वर्ष का वृद्ध भी युवा पुरुष की भांति दीर्ध जीवन की आकांक्षा रखता है। ऐसी स्थिति में प्रश्न का ठीक समाधान . इस प्रश्न का उत्तर यह है कि मृत्यु भी एक प्रकार से, चाहने से होती है। चाह दो प्रकार की है-एक दिखावटी एवं बनावटी और दूसरी चाह असली एवं सच्ची। सच्ची चाह मस्तिष्क में उत्पन्न होती है और बाहर पूरी होती है। १७० श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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