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________________ में होती है। चाहे वह किसी भी काल में, किसी भी देश में देखी या सुनी हो, मगर उसके हुए बिना उसका स्वप्न नहीं दिखता। ऐसी अवस्था में शून्यवाद सिद्ध नहीं होता। कई लोग लोक को बनावटी मानते हैं। उनके कथनानुसार ईश्वर ने लोक का निर्माण किया है। परन्तु विचार करने से इस कथन की निस्सारता प्रतीत हो जाती है। अपनी नम्रता और ईश्वर की महत्ता प्रदर्शित करने के लिये ऐसा कहना दूसरी बात है। जैसे कोई विनीत पुत्र आप धन कमाता है, मगर उसे माता-पिता का ही प्रताप कहता है। जैसे-यह आपकी ही कमाई है। आपके ही प्रताप से इसकी प्राप्ति हुई है। इसी प्रकार ईश्वर की महत्ता प्रदर्शित करने के लिए ही अगर उसे कर्ता कहा जाय तो बात दूसरी है, लेकिन जैसे कुंभार घड़ा बनाता है, उसी प्रकार ईश्वर को जगत् का कर्ता मानना उपहास्यास्पद है। ऐसा मानने से ईश्वर में अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। साथ ही यह भी मानना पड़ता है कि पहले ईश्वर है, फिर संसार है। होशियार कुंभार वही माना जाता है, जिसके बनाये हुए सभी बर्तन सुन्दर और सुडौल हों, मगर ईश्वर की रचना ऐसी नहीं है। कोई मनुष्य बदसूरत है, कोई लूला है, कोई लंगड़ा है, कोई बहिरा है, कोई अंधा है, कोई दरिद्र है, कोई अल्पायुष्क है। अगर यह कहा जाय कि जैसा जिसका कर्म था, वैसा उसे फल मिल गया तो ठीक नहीं, क्योंकि पहले अकेला ईश्वर ही था, कर्म नहीं थे। जब जीवों के कर्म नहीं थे, तो किसका फल उन्हें मिला? अतएव या तो ईश्वर को अकुशल मानना पड़ेगा या संसार को अनादि मानना पड़ेगा। सारांश यह है कि शून्यवाद और ईश्वरकर्तृत्ववाद आदि का निराकरण करने के लिए रोह ने भगवान् से विस्तार के साथ प्रश्न पूछे हैं कि इन प्रश्नोत्तरों के द्वारा यह प्रमाणित किया गया है कि भौतिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों का संयोग अनादिकालीन है। संसार के लोग कहते हैं-'आपस में लड़ाई, झगड़ा मत करो।' यह 'आपस' क्या है? यह पूछा जाय तो उत्तर मिलेगा-जिनके साथ विवाह आदि कोई संबंध हुआ है, वह 'आपस' के कहलाते हैं। मगर ज्ञानी बतलाते हैं कि हे जीव! थोड़ी देर के लिए ही तू अपनी क्षुद्र बुद्धि को त्यागकर विचारकर। तूं अनादिकाल से संसार में है। सब जीवों के साथ तेरा किसी न किसी प्रकार का संबंध हो चुका है। फिर उन्हें क्यों अपना संबंधी नहीं समझता। काल का व्यवधान पड़ने से ही क्या संबंध छोड़ बैठेगा? - भगवती सूत्र व्याख्यान १५७ 100000000000000mmmmmmmmmenseeneeeeeeeeeeeeeeeee
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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