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________________ वस्तुतः मुर्गी ही अण्डा है और अंडा ही मुर्गी है। इसी प्रकार प्रायः अन्य विषयों में भी यथायोग्य घटा लेना चाहिए । अब रोह अनगार सारे लोक का हिसाब भगवान् से पूछते हैं। वे एक को प्रमाण मानकर, दूसरे को प्रमेय बनाते हैं। रोह पूछते हैं- भगवन् ! पहले लोक का अन्त ( किनारा) है, या अलोक का अन्त? इसके उत्तर में भगवान् ने कहा- हे रोह! इन दोनों में किसी प्रकार का क्रम नहीं है । क्रम तब होता, जब दो में से एक पहले बना होता और दूसरा पीछे बना होता । यह दोनों ही शाश्वत हैं, अतएव इनमें क्रम नहीं है। · लोक के सात अवकाशान्तर माने गये हैं। अतएव रोह पूछते हैंभगवन्! पहले लोकान्त है या पहले सातवां अवकाशान्तर है? यह लोक और अवकाशान्तर का प्रश्न है । इसी प्रकार सात धनवात, सात धनोदधि और सात पृथ्वी संबंधी प्रश्न हैं । इन सब में सम्पूर्ण संसार का समावेश हो जाता है । भगवान् उत्तर देते हैं- हे रोह ! इनमें आगे पीछे का कोई क्रम नहीं है । यह सब शाश्वत भाव हैं । इसी प्रकार सातों अवकाशान्तर, सातों तनुवात, सातों घनवात, सातों घनोदधि, सातों पृथ्वी, द्वीप, सागर, वर्षक्षेत्र, नारकी आदि जीव, अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा, शरीर, योग, उपयोग, द्रव्यप्रदेश, पर्याय तथा काल के प्रश्नोत्तर समझ लेने चाहिए । अर्थात् इन सब को लोकान्त के साथ जोड़-जोड़कर प्रश्न करना चाहिए कि पहले लोकान्त है या तनुवात है ? इत्यादि । इन सबके उत्तर में भगवान् ने फरमाया - यह सब शाश्वत भाव हैं। इनमें आगे-पीछे का क्रम नहीं है। ये प्रश्न इस प्रकार भी किये जा सकते हैं रोह ने पूछा-भगवन् ! पहले द्वीप है या पहले सागर है? इसके उत्तर में भी भगवान् ने फरमाया- हे रोह ! यह दोनों अनादि हैं। रोह आगे पूछते हैं-नरक के भीतर नरका वास है, सो पहले नरक हैं या नरकावास हैं? इसका उत्तर भगवान् ने दिया- ये दोनों शाश्वत हैं। अगर कोई यह पूछे कि पहले नगर बना या नगर के गृह बने ? तो किसे पहले और किसे पीछे बतलाया जा सकता है? इसी सूत्र में से एक प्रश्न किया गया है कि राजगृह नगर किसे कहा जाय? इसका उत्तर भगवान् ने यह दिया है कि - जीव, अजीव, पृथ्वी, पानी आदि सब मिलकर राजगृह नगर कहलाते हैं। १५४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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