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________________ पांव और सिर साथ बने हैं, इन दोनों में पहले-पीछे का भेद नहीं है, इसी प्रकार शाश्वत सिद्धि और असिद्धि में भी पहले-पीछे का भेद नहीं है, जैसे सिद्धि-असिद्धि में क्रम नहीं है, उसी प्रकार सिद्धि के योग्य भव्य और सिद्धि के अयोग्य अभव्यों में भी क्रम नहीं है। इनमें भी कोई आगे-पीछे नहीं है। अब रोह अनगार प्रश्न करते हैं-भगवन्! पहले सिद्धि है या असिद्धि साधारण विचार से ऐसा प्रतीत होता है कि सिद्ध भगवान् संसार से मुक्त होकर ही सिद्धि लाभ करते हैं, अतः पहले असिद्ध और फिर सिद्ध होने चाहिए; परन्तु वास्तविक बात यह नहीं है। समूहतः सिद्ध और असिद्ध दोनों ही अनादि हैं। जैसे यद्यपि भविष्यकाल, वर्तमान होकर ही भूतकाल होता है, इसलिए पहले वर्तमान काल और पीछे भूतकाल होना चाहिए, मगर ऐसा नहीं है। तीनों ही काल प्रवाहंत अनादि और अनन्त हैं। वेदान्त ने भी, जहां वह निष्पक्ष हुए हैं, संसार को अनादि माना है। गीता संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष को अनादि कहती है। लोक-अलोक, जीव-अजीव, सिद्धि-असिद्धि, आदि आदि का हाल बाल जीवों को प्रत्यक्ष से नहीं दिखाई देता, इसलिए रोह अनगार अब एक ऐसा प्रश्न करते हैं, जो सर्वसाधारण के लिए भी प्रत्यक्ष है और जिसके उदाहरण से उपर्युक्त विषय भी समझे जा सकते हैं। रोह पूछते हैं भगवन्! पहले मुर्गी है और फिर अण्डा है या पहले अण्डा और मुर्गी है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फर्माते हैं- हे रोह! बोलते समय तो कोई भी क्रम बनाया जा सकता है, मगर वस्तु में क्रम नहीं है। अगर पहले अंडा माना जाय और फिर मुर्गी मानी जाय तो मैं पूछता हूं- मुर्गी कहां से आई? रोह-भगवन्! मुर्गी, अण्डे से आई है। भगवान् हे रोह! अण्डा कहां से आया? रोह-भगवन्! अण्डा मुर्गी से आया है। भगवान्- तो रोह! मुर्गी और अण्डे में आगे या पीछे किसे कहा जाय? वस्तुतः न कोई पहले है, न पीछे है। दोनों में आगे-पीछे का क्रम नहीं है। दोनों प्रवाह से अनादि हैं। शास्त्रकार कहते हैं कि मुर्गी और अण्डे के उदाहरण से शेष लोक-अलोक आदि का अनादि भाव समझा जा सकता है। यों काल की अपेक्षा देखा जाय तो मुर्गी, अण्डा नहीं है और अण्डा, मुर्गी नहीं है। मगर - भगवती सूत्र व्याख्यान १५३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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