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________________ बादशाह अन्यायी है? पहले तो आज्ञा देकर काम करवाता है, फिर उसके लिए दंड देता है! अगर बादशाह ने उन्हें स्वेच्छानुसार काम करने के लिए रक्खा होता और उन्हें काम करने की स्वतन्त्रता दी होती, और तब उनके कामों की जांच करके निग्रह अनुग्रह किया होता, तब तो पांच काम करने वालों में से किसी को दंड और किसी को पुरस्कार देना उचित भी कहा जा सकता था। किन्तु स्वयं काम करवा कर किसी को दंड और किसी को पुरस्कार देना किस प्रकार न्याय संगत हो सकता है? इसी प्रकार जीव अगर स्वेच्छापूर्वक काम करने वाला होता, तब तो अपने-अपने काम के अनुसार भिन्न-भिन्न फल भोगना उचित कहलाता परन्तु लोग तो यह कहते हैं कि ईश्वर की इच्छा और आज्ञा के बिना एक पता नहीं हिल सकता! अगर ऐसा है और सभी जीव जो कुछ भी करते हैं, वह ईश्वर की ही प्रेरणा से करते हैं, और फल देने वाला भी ईश्वर ही है, तो फिर ईश्वर को उसी की प्रेरणा से किये हुए काम का क्या फल देना चाहिए। यदि सब को समान फल मिलता तो कदाचित यह जाना जाता कि जीव जो कुछ करता है, वह सब एक ईश्वर की आज्ञा और इच्छा के अनुसार ही करता है। लेकिन फल में बहुत विचित्रता देखी जाती है, अतएव यह कैसे माना जा सकता है? व्याकरण में कर्ता को स्वतन्त्र माना गया है। पाणिनि कहते हैं'स्वतन्त्रः कर्ता।' कारक का विचार करने में मुख्यतया कर्ता, कर्म और क्रिया का विचार होता है। व्याकरण में कहा गया है कि कर्त्ता वह है जो स्वतन्त्र होकर क्रिया करने वाला हो- स्वेच्छा से क्रिया करे। अगर जीव से ईश्वर ही क्रिया करवाता है तो जीव कर्ता कैसे ठहर सकता है? क्योंकि वह तो ईश्वराधीन है। ऐसी हालत में क्रिया का दंड या पुरस्कार जीव को क्यों मिलना चाहिए? ___ अब आप यह कह सकते हैं कि जब कोई भी वस्तु कर्ता के बिना नहीं होती, तो फिर संसार का भी कोई न कोई कर्ता अवश्य होना चाहिए। क्या जैन शास्त्र का यह मंतव्य है कि चीज बिना बनाये भी बन सकती है? इसका उत्तर यह है कि जैन कर्त्ता मानता है और आत्मा को स्वतंत्र कर्ता मानता है। लिखे हुए अक्षर देखकर आप सोचेंगे, यह अक्षर किसी ने लिखे हैं। मगर किसने लिखे हैं, इस प्रश्न का उत्तर है- आत्मा ने लिखे हैं, कोई यह सकता है कि कलम से लिखे गये हैं। लेकिन प्रश्न लिखने वाले का है। कलम स्वयं नहीं लिख सकती। और दूसरी बात यह भी है कि कलम को बनाने वाला कौन है? कलम आखिर आत्मा ने ही तो बनाई है! अब बरु के । भगवती सूत्र व्याख्यान १४७ पी 18888888888888888888888888889esen999999999megemeg RRBasness 8 888888888REMIRROR भर
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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