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________________ घर वाला अलग, मालूम होता है, इसी प्रकार 'मेरा शरीर इस कथन से भी तो शरीर और शरीर का मालिक अलग-अलग ही प्रतीत होता है। इस प्रत्यक्ष प्रमाण को न मानना और तर्क का असत्य सहारा लेना कहां तक ठीक हो सकता है? अगर यह कहा जाय कि चैतन्य में अनन्त शक्ति है, इसलिए उसे ब्रह्म मानकर, ब्रह्म से जड़ की उत्पत्ति मान ली जाय तो क्या हानि है? इसका उत्तर यह है कि अगर यह मान लिया जाय कि पहले जीव था और फिर उससे जड़ बना तो इसका मतलब यह हुआ कि जीव ही जड़ हो गया। मिट्टी से घड़ा बनता है, इसका अर्थ यह है कि मिट्टी ही घड़ा रूप हो जाती है। इसी प्रकार ब्रह्म से अगर जड़-जगत् की उत्पत्ति मानी जाय तो ब्रह्म ही जड़ हो गया, ऐसा मानना पड़ेगा। अगर ब्रह्म को ही जड़ मान लिया जाय और सारे संसार की रचना उसी से मानी जाय तो यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि चिदानन्द अपने स्वरूप में था, तब उसे जड़ रूप बनने का क्या हेतु हुआ? ब्रह्म सचिदानन्द रूप में मौजूद था, उसे सृष्टि रूप में उत्पन्न होने की क्या आवश्यकता पड़ी? इस के अतिरिक्त, सृष्टि को बना कर फिर उसे ब्रह्मरूप में ले जाने की क्या आवश्यकता है? ईश्वरीय माया ने इस सृष्टि की रचना की है, तो जब ईश्वर अपनी माया का उपसंहार करेगा, तभी सृष्टि ब्रह्म में जा सकेगी। तभी वह या उसका कोई भी अंश कैसे ब्रह्मस्वरूप हो सकता है। लोग कहते हैं, परमात्मा की इच्छा हुई कि चलो संसार बनाएं, सो उसने संसार बना डाला। लेकिन वीतराग को भी कभी इच्छा हो सकती है? जो निरंजन, कहलाता है, उसे भी इच्छा हो और वह भी विचित्र-विचित्र प्रकार की हो, यह कैसे संभव है? कोई संत-महात्मा भी नहीं चाहते कि जगत् का कोई भी जीव दुखी हो, तो फिर सैकड़ों दुखों से परिपूर्ण सृष्टि ईश्वर कैसे रचेगा? कई वेदान्ती भी ईश्वर में इच्छा स्वीकार नहीं करते। स्वामी रामतीर्थ ने अपने एक व्याख्यान में कहा है कि- कल्पना कीजिए, एक बादशाह ने अपने पांच नौकरों को भिन्न-भिन्न काम बतलाया। नौकरों ने बादशाह के आदेशानुसार काम कर दिया। जब वे काम करके बादशाह के पास आये, तब बादशाह को क्या करना चाहिये? क्या बादशाह एक को कार गार और दूसरे को पुरस्कार दे? क्या वह एक को सत्कार और दूसरे का तिरस्कार करे? अगर बादशाह ऐसा करता है तो कौन निष्पक्ष विचारक यह नहीं कहेगा कि १४६ श्री जवाहर किरणावली -
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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