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________________ बिना दिये किसी की चीज ले लेना अदत्तादान कहलाता है। कोई आदमी बिना दी गई वस्तु तो न ले, परन्तु किसी से ऐसी लिखत लिखा लेवे कि जिससे विवश होकर उस लिखने वाले को लिखत के अनुसार देना पड़े; देने वाले का चित्त बेहक का देने के कारण दुःखी हो, तो ऐसा लेने वाला अदत्तादान करता है। भले ही लेने वाला ये समझे कि वह अदत्तादान नहीं करता, लेकिन ज्ञानी पुरुष यह कहते हैं कि कुटिलता का भाव रखकर बेहक का लेना अदत्तादान के ही अन्तर्गत है। _ 'अदत्तादान' का शब्दार्थ तो इतना ही है कि किसी की बिना दी हुई चीज न लेना। मगर उसका भाव अर्थ बहुत व्यापक है। कहां-कहां किस-किस प्रकार से अदत्तादान का पाप लगता है, यह जानने के लिए विवेक की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ-दो भाई शामिल भोजन करते हैं। चीज थोड़ी है और अधिक मिलने की आशा नहीं है। यह मालूम है कि इस चीज में दोनों का हक बराबर है, लेकिन एक हाथ धीमा चलता है और दूसरे का जल्दी-जल्दी। इस कारण एक भाई अपने भाग से भी अधिक खा गया और दूसरे को उसका भत्ता भी पूरा नहीं मिला। तो ज्यादा खाने वाले को अदत्तादान की क्रिया लगती है या नहीं ? आप कहेंगे- उसने कब चोरी की है? वह तो दूसरे के सामने बैठकर ही खा रहा था। किन्तु ज्ञानी पुरुष कहते हैं-उसने ध्यान नहीं रक्खा कि इस चीज में दोनों का भाग बराबर-बराबर है। प्राणरक्षा दोनों करना चाहते हैं। लेकिन उसने उसकी रक्षा की परवाह नहीं की। मगर वह जल्दी भोजन करता था तो उसे उचित था कि वह पहले ही दो भाग कर लेता या अपने ही हक का खाता। यदि ऐसा किया होता तो उसे अदत्तादान की क्रिया न लगती। एक उदाहरण और लीजिए। मान लीजिए, आप चालाक या होशियार है और दूसरा आदमी सीधा और भोला है, ऐसे भोले आदमी को किसी प्रकार की चाल में फंसा अनुचित उपाय से कुछ ऐंठ लेना और फिर यह कहना कि मैं बिना दिये नहीं लेता या हक का लेता हूं, ठीक नहीं यह भी अदत्तादान है। आप की दृष्टि में चाहे वह अदत्तादान न हो, मगर ज्ञानी की दृष्टि में वह अदत्तादान है। अगर आप यह सोचें कि यह भोला है तो क्या हुआ, इसे इसके हक का मिलना चाहिए और मुझे मेरे हक का; और आप उचित भाग ही लें तो आपको अदत्तादान की क्रिया नहीं लगेगी। प्रकृति-प्रदत्त पदार्थों पर सबका समान अधिकार है। कल्पना कीजिए आपके पास दो कोट है। आपकी ठंड दूर करने के लिए एक ही कोट काफी १२८ श्री जवाहर किरणावली .
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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