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________________ आपने असत्य बोलकर रुपये मांगने वाले को टाल दिया, मगर उसका आपके ऊपर विश्वास नहीं रहा। वह जान गया कि आप चाहते तो रुपये दे सकते थे, किन्तु मतलब निकालने के लिए झूठ भी बोल सकते हैं। इस प्रकार की आत्मवंचना करके आपने अपने को सत्पुरुषों की गणना से बाहर कर लिया। जब तक आप झूठ नहीं बोले थे-आत्मवंचना आपने नहीं की थी तब तक आप सत्यरूप थे। परन्तु झूठ बोलने के कारण आपका ईश्वरत्व ठगा गया। अगर आप साहस करके स्पष्ट कह देते-मेरे पास रुपये हैं, मगर अमुक कारण से नहीं दे सकता, तो थोड़ी देर के लिए वह मांगने वाला पुरुष बुरा चाहे मान लेता परन्तु यह तो कहता ही कि मुझे रुपये नहीं दिये, यह बात दूसरी है, मगर हैं सत्पुरुष-झूठ नहीं बोलते। लेकिन आप मनुष्य को नाराज नहीं करना चाहते, ईश्वर भले ही नाराज हो जाए। शास्त्र में कहा है तं सच्चंखु भगवं सत्य भगवान् है। उस भगवान् को आपने असत्य बोलकर नाराज कर दिया। आप कदाचित् सोचते होंगे कि ऐसा किये बिना हमारा काम नहीं चलता, मगर यह आपका भ्रम है। चिरकालीन अभ्यास के कारण ही आपको ऐसा मालूम होता है। इसी भ्रम के शिकार होकर लोग सत्य बोलकर मनुष्य को नाराज करने की अपेक्षा झूठ बोलकर सत्य का परित्याग करते हैं। यह सम्भव है कि कभी रुपये आपके घर में हों, मगर आपको उनके होने का पता नहीं है और आप कह देते हैं कि भाई! मैं देना तो चाहता था, मगर रुपये मेरे पास नहीं हैं। ऐसी अवस्था में आपको मृषावाद की क्रिया नहीं लगेगी; क्योंकि आपने जो कुछ कहा है उसे सत्य समझकर ही कहा है। अलबत्ता, जहां जान-बूझकर, कपट करके मृषावाद किया जाता है, वहां मृषावाद का पाप अवश्य लगता है। यहां यह प्रश्न हो सकता है कि प्राणातिपात से लगने वाली क्रिया कौनसी है और मृषावाद से लगने वाली क्रिया कौनसी है ! इसका उत्तर यह है कि वस्तु तो एक ही है, किन्तु प्राप्ति के कारण अलग-अलग है। एक आदमी हाथ से भोजन करता है, दूसरा छुरी कांटे से। हाथ से खाने पर हाथ का चेप लगेगा और छुरी आदि से खाने पर उनका चेप लगेगा? इसी प्रकार प्राणातिपात करने पर प्राणातिपात जन्य क्रिया लगती है और मृषावाद करने पर मृषावाद जन्य क्रिया लगती है। गौतम स्वामी पूछते हैं-प्रभो ! क्या अदत्तादान की भी क्रिया लगती है? भगवान् उत्तर देते हैं-हां, गौतम! लगती है। - भगवती सूत्र व्याख्यान १२७
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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