SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यथा प्राणातिपातस्तथा मृषावादः, तथा अदत्तादानम्, मैथुनम्, परिग्रहः, क्रोधो यावत् मिथ्यादर्शन शल्यम्। एवमेते अष्टादश चतुर्विंशतिर्दण्डका भणितव्याः। तदेवं भगवन्! तदेवं भगवन्! इति भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं यावत्-विहरति। शब्दार्थ प्रश्न-भगवन्! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की जाती है ? उत्तर-हां, गौतम की जाती है। प्रश्न-भगवन्! की जाने वाली वह क्रिया स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है? उत्तर-हे गौतम! यावत्-व्याघात न हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित् चार दिशाओं को और कदाचित् पांच दिशाओं को स्पर्श करती है। प्रश्न-भगवन्! की जाने वाली क्रिया कृत है या अकृत है? उत्तर-हे गौतम! वह क्रिया कृत है, अकृत नहीं है। प्रश्न-भगवन्! की जाने वाली क्रिया आत्मकृत है, परकृत है या उभयकृत है? उत्तर-हे गौतम! वह आत्मकृत है, परकृत या उभयकृत नहीं है। प्रश्न-भगवन्! जो क्रिया की जाती है वह अनुक्रमपूर्वक कृत है या बिना अनुक्रम के कृत है? उत्तर-हे गौतम! वह अनुक्रमपूर्वक कृत है, बिना अनुक्रम के कृत नहीं है। और जो क्रिया की जा रही है तथा की जायगी वह सब अनुक्रमपूर्वक कृत है, बिना अनुक्रम के नहीं, ऐसा कहना चाहिए। प्रश्न-भगवन्! नारकों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की जाती है? उत्तर-हे,गौतम! हां, की जाती है। प्रश्न-भगवन! नैरयिकों द्वारा जो क्रिया की जाती है, वह स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है? उत्तर-हे गौतम! वह क्रिया यावत्-नियम से छहों दिशाओं में की जाती है। प्रश्न-भगवन! जो क्रिया की जाती है वह कृत है या अकृत है? उत्तर-हे गौतम! वह पहले की तरह जानना। यावत् वह बिना अनुक्रम के कृत नहीं है, ऐसा कहना चाहिए। - भगवती सूत्र व्याख्यान १०६
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy