________________
5. व्याख्या प्रज्ञप्ति-स्वसमय, परसमाय, स्व-परसमय, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक, देव, राजा, राजर्षि और संदिग्ध पुरुषों द्वारा पूछे हुए प्रश्नों के भगवान् द्वारा दिए हुए उत्तर इस सूत्र में हैं। यह उत्तर द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काल, पर्यत, प्रदेश और परिणाम के अनुगम, निक्षेपण, नय, प्रमाण एवं उपक्रमपूर्वक यथास्थित भाव के प्रतिपादक हैं, लोक और अलोक को प्रकाशित करने वाले हैं, जो संसार-सागर से तिराने में समर्थ हैं, इन्द्रपूजित हैं, भव्य जीवों के हृदय को आनन्द देने वाले हैं, अंधकार की मलिनता के नाशक हैं, भली भांति दृष्ट हैं, दीपक के समान हैं, बुद्धिवर्धक हैं। ऐसे छत्तीस हजार प्रश्नोत्तर व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग में दिये गये हैं। इस अंग में एक श्रुत स्कन्ध, साधिक सौ अध्ययन, दस हजार उद्देशक, दस हजार समुद्देशक , छत्तीस हजार प्रश्न और चौरासी हजार पद हैं। नन्दी सूत्र में कहीं दो लाख अठयासी हजार पद भी बताये हैं।
6. ज्ञाताधर्मकथा-इस अंग में उदाहरण योग्य पुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिक एवं पारलौकिक ऋद्धि, भगपरित्याग, दीक्षा, श्रुतग्रहण, तप, उपधान, पर्याय, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादोपगमन, देवलोकगमन, सुकुलों में अवतार लेना, बोधिलाभ और मोक्षप्राप्ति आदि विषयों का वर्णन है। इस अंग में दो श्रुतस्कन्ध और उनतीस अध्ययन हैं। यह अध्ययन दो प्रकार के हैं -चरित और कल्पित। इसमें धर्मकथा के दस वर्ग हैं। एक-एक धर्मकथा में पांच-पांच सौ आख्यायिकाएं हैं। एक-एक उपाख्यायिका में पांच-पांच सौ उपाचख्यायिकाएं हैं। एक-एक उपाख्यायिका में पांच-पांच सौ आख्यायिकोपाख्यायिकाएं हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर साढ़े तीन करोड़ आख्यायिकाएं होती हैं। उनतीस उद्देशनकाल हैं और इतने ही समुद्देशनकाल हैं। पांच लाख छियतर हजार पद
7. उपाशक दशांग-इस अंग में श्रावकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, समवसरण, श्रावकों के शीलव्रत, विरमण, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, श्रुतपरिग्रह, तप, उपधान, पडिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादोपगमन, देवलोकगमन, सुकुल में जन्म, बोधिलाभ और अन्तक्रिया आदि का वर्णन है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, दस उद्देशनकाल, दस समुद्देशनकाल, और ग्यारह लाख बावन हजार पद हैं। ६४ श्री जवाहर किरणावली