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श्री जवाहर विद्यापीठ, भीनासर
- एक परिचय -
स्थानकवासी जैन परम्परा में आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. सा. एक महान् क्रांतिकारी संत हुए हैं। आषाढ़ शुक्ला संवत् 2000 को भीनासर में सेठ हमीरमलजी बांठिया स्थानकवासी जैन पौषधशाला में उन्होंने संथारापूर्वक अपनी देह का त्याग किया। उनकी महाप्रयाण यात्रा के बाद चतुर्विध संघ की एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई जिसमें उनके अनन्य भक्त भीनासर के सेठ श्री चम्पालाल जी बांठिया ने उनकी स्मृति में भीनासर में ज्ञान-दर्शन चारित्र की आराधना हेतु एक जीवन्त स्मारक बनाने की अपील की। तदन्तर दिनांक 29.4.1944 को श्री जवाहर विद्यापीठ के रूप में इस स्मारक ने मूर्त रूप लिया।
शिक्षा-ज्ञान एवं सेवा की त्रिवेणी प्रवाहित करते हुए संस्था ने अपने छह दशक पूर्ण कर लिए हैं। आचार्य श्री जवाहरलालजी म.सा. के व्याख्यानों से संकलित, सम्पादित ग्रंथों को 'श्री जवाहर किरणावली' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है। वर्तमान में इसकी 32 किरणों का प्रकाशन संस्था द्वारा किया जा रहा है इसमें गुंफित आचार्यश्री की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का यह कीर्तिमानीय कार्य है। आज गौरवान्वित है गंगाशहर-भीनासर की पुण्यभूमि जिसे दादा गुरु का धाम बनने का सुअवसर मिला और ज्योतिर्धर आचार्य श्री जवाहरलाल जी म.सा. की कालजयी वाणी जन-जन तक पहुंच सकी।
संस्था द्वारा एक पुस्तकालय का संचालन किया जाता है जिसमें लगभग 5000 पुस्तकें एवं लगभग 400 हस्तलिखित ग्रंथ हैं। इसी से सम्बद्ध वाचनालय में दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिककुल 30 पत्र-पत्रिकायें उपलब्ध करवाई जाती हैं। प्रतिदिन करीब 50-60 पाठक इससे लाभान्वित होते हैं। ज्ञान-प्रसार के क्षेत्र में पुस्तकालय-वाचनालय की सेवा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और क्षेत्र में अद्वितीय है।
३०० श्री जवाहर किरणावली
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