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त्रीन्द्रिय आदि जीवों का वर्णन
मूलपाठतेइंदिय-चउरिंदियाणं णाणतं ठिइए, जाव णेगाई णं भागसहस्साइं अणाघाइज्जमाणाई अणासाइज्जमाणाइं अफासाइज्जमाणाई विद्धंसं आगच्छन्ति।
प्रश्न-एएसिं णं भंते! पोग्गलाणं अणाधाइज्जमाणाणं 3 पुच्छा?
उत्तर-गोयमा! सव्वत्थोवा पोग्गला अणाघाइज्जमाणा, अणासाइज्जमाणा अणंतगुणा, अफासाइज्जमाणा अणंतगुणां, तेइंदियाणं घाणिंदिय-जिब्मिदिय–फासिंदिय-वेमायाए भुज्जो भुज्जो परिणमंति।
___ संस्कृत छाया-त्रीन्दिय-चतुरिन्द्रियाणं नानात्वं स्थितौ यावत् अनेकानि च भागसहस्राणि अनाघ्रायमाणानि, अनास्वाद्यमानानि, अस्पृश्यमानानि विध विध्वंसमागच्छन्ति।
प्रश्न-ऐतेषां भगवन्! पुद्गलानामनाघ्रायमाणानां 3 पृच्छा?
उत्तर- गौतम! सर्वस्सतो का पुद् गला अनाघ्रायमाणाः, अनास्वाद्यमाना अनन्तगुणाः, अस्पय॑माना अनन्तगुणाः। त्रीन्द्रियाण घ्राणेन्द्रिय-जिह्वेन्द्रिय-स्पर्शन्द्रियविमात्रया भूयो भूयः परिणमन्ति।
मूलाथ-तीन इन्द्रिय वाले और चार इन्द्रिय वाले जीवों की स्थिति में भेद है, शेष सब पहले की भांति है। यावत् अनेक हजार भाग बिना सूंघे, बिना चखे, बिना स्पर्श ही नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न-भगवन्! इन नहीं सूंघे, नहीं चखे और नहीं स्पर्श किये हुए पुद्गलों में कौन किससे थोड़ा, बहुत तुल्य या विशेषाधिक है?
उत्तर- हे गौतम! सब से कम नहीं सूंघे हुए पुद्गल हैं, उनसे अनन्त गुने नहीं चखे हुए और उनसे अनन्त गुने नहीं स्पर्श किये हुए पुद्गल हैं। तीन २८६ श्री जवाहर किरणावली