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शेष अनेक हजार भाग बिना आस्वाद के और बिना स्पर्श के ही नष्ट हो जाते
हैं ।
प्रश्न- भगवन्! नहीं आस्वादन किये जाने वाले और नहीं स्पर्श किये जाने वाले पुद्गलों में से कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है या विशेषाधिक हैं? अर्थात् जो पुद्गल आस्वाद में नहीं आये, वे अधिक है या जो स्पर्श में नहीं आये वे अधिक हैं?
उत्तर- गौतम! आस्वाद में नहीं आने वाले पुद्गल सब से कम हैं और स्पर्श में नहीं आये हुए पुद्गल उनसे अनन्त गुने हैं।
प्रश्न- भगवन! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल किस रूप में पलटते हैं?
उत्तर- गौतम! जिहा इन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के रूप में पलट जाते
हैं ।
प्रश्न- भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्गल परिणत हुए - पलटे हैं?
उत्तर - यह सब वक्तव्य पहले की भांति ही समझना । यावत् चलित कर्म की निर्जरा होती है।
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २८५