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________________ उत्तर-गौतम! प्रतिसमय-निरन्तर आहार की अभिलाषा होती है। प्रश्न-भगवन्! पृथ्वीकाय के जीव किसका आहार करते हैं? उत्तर-गौतम! द्रव्य से अनन्त प्रदेश वाले द्रव्य का आहार करते हैं, इत्यादि नारकी के समान जानना पृथिवीकाय के जीव व्याघात न हो तो छहों दिशाओ से कदाचित् चार और कदाचित् पांच दिशाओं से आहार लेते हैं। वर्ण से पाचों वर्ण के द्रव्य आहार करते हैं। गंध से दोनो गंध वाले और रस से पांचों रस वाले द्रव्य का आहार करते हैं। स्पर्श की अपेक्षा आठों स्पर्श वाले द्रव्य का आहार करते हैं। शेष सब पहले के वर्णन के समान ही समझना चाहिए। उत्तर-गौतम! असंख्यात भाग का आहार करते हैं और अनन्त भाग का आस्वादन करते हैं। प्रश्न-भगवन्! उनके आहार किये हुए पुद्गल बार-बार किस रूप में परिणत होते हैं? उत्तर-गौतम! विविध प्रकार की स्पर्शनेन्द्रिय के रूप में पुनः पुनः परिणत होते हैं, शेष सब नारकियों के समान समझना चाहिए। यावत् अचलित कर्म की निर्जरा नहीं होती। इसी प्रकार जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीवों के विषय में समझना चाहिए। अलबत्ता इनकी स्थिति पृथक-पृथक है, सो जिसकी जितनी स्थिति हो, उसकी उतनी स्थिति कहनी और उच्छवास भी विविध प्रकार से जानना चाहिए। २८२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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