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इस प्रश्न का भगवान् ने उत्तर दिया-गौतम ! नारकी जीव अतीत काल में तैजस-कार्मण शरीर रूप में पुदगलों को ग्रहण नहीं करते, इसी प्रकार भविष्य में भी ग्रहण नहीं करते, किन्तु वर्तमान में ग्रहण करते हैं। इसका कारण स्पष्ट है। अतीत काल नष्ट हो चुका है, भविष्य काल अभी तक उत्पत्र नहीं हुआ। जो आदमी मर गया है, या जो अब तक उत्पत्र ही नहीं हुआ, वह पत्र नहीं लिख सकता। पत्र वही लिखेगा जो वर्तमान में है।
प्रश्न होता है कि जब प्रत्येक कार्य वर्तमान में ही हो सकता है, भूतकाल या भविष्यकाल में नहीं हो सकता; यह बात प्रसिद्ध है तो यहां तीनों कालों को लेकर प्रश्न क्यों किया गया है?
इसका उत्तर यह है कि भगवान् को लोकोत्तर विषय में, लौकिक बात दिखानी है। एक 'क' वर्ण के उच्चारण में भी असंख्यात समय लग जाते हैं, लेकिन हमें असंख्यात समय का अनुभव नहीं होता। मगर ज्ञानी जानते हैं कि नेत्र मूंद कर खोलने में कितना समय लगता है। इन समयों में से किस समय क्या होता है, यह बताने के लिए ही यह चर्चा की गई है।
'क' वर्ण के उच्चारण में असंख्यात समय लगते हैं, यह अनुभव हमें नहीं होता। अगर अनुभव होता तो गौतम स्वामी, भगवान् महावीर से प्रश्न ही क्यों करते? असंख्यात समय किस प्रकार लग जाते हैं, इस बात को पहले दिये हुए कपड़े के दृष्टान्त से समझा जा सकता है। बल्कि ज्ञानियों का कथन तो यह है कि एक वस्त्र का एक तार टूटने में भी असंख्यात समय लग जाते हैं, क्योंकि एक तार रूई के रेशों से बना है। पहले एक रेशा टूटेगा, तब दूसरा टूटेगा। पहले रेशे के टूटे बिना दूसरा रेशा नहीं टूट सकता। इस प्रकार एक तार टूटने में भी असंख्यात समय लग जाते हैं।
जिसका काम जितने से चल जाता है, वह काल के उतने ही हिस्से कर लेता है। आप लोगों ने वर्ष को महीनों में विभक्त किया। महीनों को सप्ताहों और दिनों में, दिनों को घंटो में, घंटो को मिनटों में और मिनटों को सैकिंडों में बांट लिया। सैकिंडों पर आकर आप रुक गये। लेकिन क्या सैकिंडों के हिस्से नहीं हो सकते? अवश्य! मगर आपका काम इतने से ही चल जाता है, इस कारण आप आगे विभाजन नहीं करते। किन्तु ज्ञानियों को तो एक समय से भी काम है और अपनी दिव्य दृष्टि में वे उस 'समय' को स्पष्ट २७० श्री जवाहर किरणावली