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मूलार्थ-प्रश्न-भगवन्! नारकी जीव जिन पुद्गलों को तैजस-कार्मण रूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल समय में ग्रहण करते हैं ? वर्तमान काल-समय में ग्रहण करते हैं? या भविष्यकाल समय में ग्रहण करते हैं?
उत्तर-हे गौतम! अतीतकाल-समय में ग्रहण नहीं करते, वर्तमान-काल में ग्रहण करते हैं, भविष्यकालसमय में ग्रहण नहीं करते।
प्रश्न-हे भगवन्! नारकी तैजस-कार्मण रूप में ग्रहण किये हुए जिन पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, सो-क्या अतीत काल-समय में गृहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं? या वर्तमान काल-समय में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की उदीरणा करते हैं? या जिनका उदय आगे आने वाला है ऐसे-भविष्यकालीन-पुद्गलों की उदीरणा करते हैं?
उत्तर-हे गौतम! अतीत काल-समय में ग्रहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं; वर्तमान काल-समय में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते, तथा आगे ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की भी उदीरणा नहीं करते। इसी प्रकार वेदते हैं और निर्जरा करते हैं।
प्रश्न-भगवन्! नारकी क्या जीव-प्रदेश से चलित कर्म को बांधते हैं या अचलित कर्म को बांधते हैं?
उत्तर-गौतम! चलित कर्म को नहीं बांधते, अचलित कर्म को बांधते हैं।
प्रश्न-भगवन्! नारकी क्या जीव-प्रदेश से चलित कर्म की उदीरणा करते हैं अथवा अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं?
उत्तर-गौतम! नारकी चलित कर्म की उदीरणा नहीं करते, वरन् अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं। इसी प्रकार वेदन करते हैं, अपवर्तन करते हैं, संक्रमण करते हैं, निधत्त करते हैं और निकाचित करते हैं। इन सब पदों में अचलित कहना चाहिए, चलित नहीं।
प्रश्न-भगवन्! क्या नारकी जीव-प्रदेश से चलित कर्म की निर्जरा करते हैं या अचलित कर्म की निर्जरा करते हैं?
उत्तर-गौतम! चलितकर्म की निर्जरा करते हैं, अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते। गाथा
बंध, उदय, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचल के विषय में अचलित कर्म समझना चाहिए और निर्जरा के विषय में चलित कर्म समझना चाहिए। २६८ श्री जवाहर किरणावली