________________
कार्य मंगल रूप हैं भी, परन्तु शास्त्र की दृष्टि में वे कार्य एकान्त रूप से मंगल नहीं हैं, क्योंकि इन कार्यों से एक पक्ष को अगर लाभ पहुंचता है तो दूसरे पक्ष को हानि भी पहुंचती है।
___ एक भाई ने सोचा-मैं किसी महात्मा की शरण लेकर लखपति बन जाऊं। ऐसा सोच कर वह महात्मा के शरण में गया। महात्मा ने मंगल देकर कहा-जा, इससे एक लाख रुपया कमा लेना। देखना चाहिए यह कैसा मंगल हुआ? वास्तव में महात्मा पुरुष किसी को लखपति बनाने के लिए मंगल नहीं देते। क्योंकि एक लाख रुपया कमाकर जब एक पुरुष लखपति बनेगा तो दूसरे के पास से उतना रुपया कम हो जायेगा। एक का कमाना दूसरे का गंवाना है। ऐसी स्थिति में कमाने वाले का मंगल हुआ तो गंवाने वाले का अमंगल हुआ। प्रत्येक का मंगल चाहने वाला महात्मा ऐसा नहीं कर सकता। वह तो एकान्त मंगल कारक ही होता है।
कहा जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति संग्राम के लिए या व्यापार के लिए जाता हो तो उसे मंगलपाठ (मांगलिक) सुनाना चाहिए या नहीं? इसका उत्तर यह है कि जब कभी भी कोई आराधक मांगलिक सुनने के लिए साधु की सेवा में उपस्थित हो तो उसे मांगलिक अवश्य सुनाना चाहिए। फिर भी पूर्वोक्त कथन में और इस कथन में विरोध नहीं है।
व्यापार के निमित्त जाने वाले को साधु मांगलिक सुनाते हैं सो इसलिए कि व्यापार के लिए जाने वाला द्रव्य-धन के प्रलोभन में भावधन को न भूल जावे। संसार में अनुरक्त गृहस्थ सांसारिक भोगोपभोग के साधनभूत पदार्थों के उपार्जन और संरक्षण में कभी-कभी इतना व्यस्त हो जाता है कि वह आत्म-कल्याण के सच्चे साधनों को भूल जाता है। उसे भोगोपभोग के साधन ही मंगलकारक, शरणभूत और उत्तम प्रतीत होते हैं। ऐसे लोगों पर अनुग्रह करके उन्हें वास्तविकता का भान कराना साधुओं का कर्तव्य है। अतएव साधु मांगलिक श्रवण कराकर उसे सावधान करते हैं कि हे भद्र पुरुष! तू इतना याद रखना कि संसार में चार महामंगल हैं-अरिहंत, सिद्ध, साधु और सर्वज्ञ वीतराग द्वारा प्ररूपित दयामय धर्म। संसार में चार सर्व श्रेष्ठ पद हैं- अरिहंत, सिद्ध, साधु और दयामय धर्म। अतएव तू अपने मन में संकल्प कर कि मैं अरिहंत की शरण ग्रहण करता हूं, मैं सिद्ध की शरण ग्रहण करता हूं, मैं सन्त पुरुषों की शरण ग्रहण करता हूं, मैं सर्वज्ञ के धर्म की शरण ग्रहण करता हूं।
उपर्युक्त महामंगल पाठ प्रत्येक अवस्था में सुनाने योग्य है। अगर कोई पुरुष किसी शुभ कार्य के लिए जाते समय मंगल श्रवण करना चाहे तब तो १६ श्री जवाहर किरणावली -