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हे गौतम! छोटे पुद्गलों का भी और बड़े पुद्गलों का भी। यहां आशंका की जा सकती है कि छोटे और बडे पुदगल से क्या तात्पर्य समझना चाहिए? छोटापन और बडापन सापेक्ष है। यह बड़ा और यह छोटा है, यह नियत नहीं। जो किसी की अपेक्षा छोटा है वही दूसरी अपेक्षा से बड़ा होता है और जो एक अपेक्षा से बड़ा है वह दूसरी अपेक्षा से छोटा भी होता है। इस प्रकार छोटापन और बडापन सापेक्ष है अतएव अनियत है।
___नरक के जीव जिन पुद्गलों का आहर करते हैं, उनमें से कोई एक पुद्गल अगर दूसरे से एक प्रदेश भी बड़ा है तो वह बडा कहलायेगा। जो अधिक प्रदेश बडा है, वह भी बड़ा कहलायेगा, वह उस बड़े से भी बड़ा कहलायेगा, मगर इस अधिक बड़े की अपेक्षा वह बड़ा भी छोटा कहा जा सकता है। पहली उंगली दूसरी की अपेक्षा छोटी है। दूसरी बड़ी है। मगर तीसरी की अपेक्षा यह दूसरी भी छोटी है। यही बात प्रत्येक वस्तु के विषय में समझी जा सकती है।
गौतम स्वामी-भगवन्! नरक के जीव जिन छोटे-बडे पुदगलों का आहार करते हैं, वे ऊंची दिशा से आये हुए होते हैं? नीची दिशा से आये हुए होते हैं? या तिरछी दिशा से आये हुए होते हैं?
भगवान हे गौतम! नरक के जीव तीनों दिशाओं से आये पुदगलों का आहार करते हैं।
यहां गौतम स्वामी ने तीन ही दिशाओं को लेकर प्रश्न किया है। उर्ध्व दिशा और अधो दिशा तो है ही, तिरछी दिशा में चारों ही दिशाओं का समावेश हो जाता है।
सूर्य जिस ओर निकलता है उस ओर मुंह करके खड़ा होने से मुंह के सामने की दिशा पूर्व दिशा होगी। दाहिने हाथ की तरफ दक्षिण दिशा, बायें हाथ की ओर उत्तर दिशा और पीठ की तरफ पश्चिम दिशा होगी। ऊपर की ओर ऊर्ध्व दिशा और नीचे की तरफ अधोदिशा कहलाएगी। ये दिशाएं मेरु के हिसाब से नहीं हैं किन्तु अपने हिसाब से हैं। गौतम स्वामी ने जिन तीन दिशाओं को लेकर प्रश्न किया है, वे नरक की अपेक्षा हैं।
गौतम-भगवन्! अगर नरक के जीव तीनों दिशाओं के पुद्गलों का आहार करते हैं, तो आदि समय में आहर करते हैं, मध्य समय में आहार करते हैं, या अन्त समय में आहार करते हैं।
भगवन्-हे गौतम! तीनों समयों में आहार करते हैं। अर्थात् आभोगनिर्वलित आहार को आदि समय में भी ग्रहण करते हैं, मध्य समय में और अन्तिम समय में भी ग्रहण करते हैं।
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २४३