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उच्चारण करने के बाद 'ख' का उच्चारण करने की इच्छा होने में ही असंख्यात समय बीत जाते हैं। इस नियम के अनुसार यद्यपि नारकी जीव को कभी तृप्ति नहीं होती, फिर भी एक बार इच्छा करने के बाद दूसरी बार इच्छा करने में ही अंसख्य समय लग जाते हैं।
__ नरक के जीव मवाद-मांस आदि पुदगलों का आहार करते हैं, जब वे आहार करते हैं तब भी उनकी भूख नहीं मिटती-उन्हें तृप्ति नहीं होती किन्तु फिर खाने की इच्छा होने में असंख्यात समय लग जाते हैं। शास्त्रकारों ने नारकी जीवों की भूख मिट जाने की बात नहीं कही है किन्तु यह कहा है कि उन्हें असंख्यात समय में भोजन की इच्छा होती है। सिर्फ इस अभिप्राय से कहा है कि एक इच्छा के पश्चात् तत्काल ही दूसरी इच्छा होने में असंख्यात समय लग जाते हैं।
अब प्रश्न यह है कि अगर नारकी जीव आहार करते हैं तो किस वस्तु का आहार करते हैं?
यह पंचम द्वार का प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर भगवान् ने फरमाया है-हे गौतम! नरक के जीव द्रव्य की अपेक्षा अनन्त प्रदेश वाले पुदगलों का आहार करते हैं, पुदगल का सबसे छोटा अविभाज्य अंश-जो खुला रहता है अर्थात् बिल्कुल अलग होता है परमाणु कहलाता है और वही अंश जब जुडा रहता है तो प्रदेश कहलाता है। जो पुद्गल अनन्तप्रदेशी होकर भी सूक्ष्म स्कंध रूप होता है, वह आकाश के एक प्रदेश में समा सकता है। यहां ऐसे सुक्ष्मस्कंध से अभिप्राय नहीं है। किन्तु बादर अनन्त प्रदेशी स्कंध से तात्पर्य समझना चाहिए।
नारकी जीव काल की अपेक्षा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति वाले पुदगलों में से किन्हीं भी पुदगलों का आहार करते हैं।
नारकी जीव भाव की अपेक्षा वर्ण वाले, गंध वाले, रस वाले और स्पर्श वाले पुदगलों का आहार करते हैं।
____ गौतम स्वामी फिर प्रश्न करते हैं-भगवन्! नारकी वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, तो एक ही वर्ण के पुद्गलों का आहार करते हैं या पंच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं।
इस प्रश्न का उत्तर भगवान् ने फरमाया है-हे गौतम! नारकी पांचों वर्ण वाले पुदगलों का आहार करते हैं। इस प्रश्न के उत्तर में सामान्य और विशेष की विवक्षा की गई है। सामान्य को स्थानगमन भी कहते हैं और विशेष का विधनगमन नाम भी है। स्थानगमन अर्थात् सामान्य की अपेक्षा एक वर्ण २४० श्री जवाहर किरणावली