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________________ डाक्टर कहते हैं-खान-पान में सावधान रहो, गंदगी मत होने दो और दूसरे खराब परमाणुओं को अपने शरीर में प्रवेश मत होने दो। यद्यपि डाक्टर को रोग मिटाना अभीष्ट है लेकिन वह गंदगी से बचने की बात कहता है। इससे यह स्पष्ट है कि शरीर में गंदगी जाती है। ऐसा न होता तो डाक्टर को मनाही करने की क्या आवश्यकता होती? यद्यपि गंदगी खाने की इच्छा कोई करता नहीं है तथापि किसी न किसी कारण से गंदगी खाने में आ ही जाती है। इसी प्रकार इच्छा न होने पर भी शरीर के आसपास घूमने वाले परमाणु आहार में आ जाते हैं। इसी आधार पर अन्यान्य क्रियाओं पर विचार करने से प्रतीत होता है, किस प्रकार इच्छा के अभाव में भी अनेक कार्य होते रहते हैं। गौतम स्वामी का मूल प्रश्न है-आहार के समय की मर्यादा का, पर भगवान ने फरमाया- आहार दो प्रकार का होता है। इन दोनों प्रकार के आहारों में से अनाभोगआहार तो निरन्तर-प्रतिक्षण होता रहता है। एक समय भी ऐसा व्यतीत नहीं होता जब यह आहार न होता हो। यह आहार बुद्धिपूर्वक-संकल्प द्वारा नहीं रोका जा सकता। दूसरा इच्छापूर्वक जो आहार होता है, उसकी इच्छा कम से कम असंख्यात समय में होती है। प्रश्न-असंख्यात समय कहने से काल की कोई निश्चित मर्यादा नहीं प्रतीत होती। एक उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी काल में भी असंख्यात समय होते हैं और आंख बंद कर खोलने में भी असंख्यात समय होते हैं। ऐसी अनिश्चित संख्या बतलाने से क्या समझना चाहिए? उत्तर-यहां असंख्यात समय एक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण लेना चाहिए। अर्थात् नारकी जीवों को अन्तर्मुहूर्त में आभोग निर्वर्तित आहार की इच्छा होती एक दिन-रात में 30 मुहूर्त होते हैं। मुहूर्त-प्रमाण समय में कुछ कम समय को अन्तर्मुहूर्त करते हैं। अन्तर्मुहूर्त में असंख्यात समय होते हैं। इस असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त के भी असंख्य भेद हैं। किसी अन्तर्मुहर्त में थोड़ा समय होता है और किसी में ज्यादा होता है। लेकिन असंख्यात समय किसी अन्तर्मुहूर्त के सिवाय दूसरे को नहीं कहा जा सकता। प्रश्न-नारकी जीवों को अन्तर्मुहूर्त में आहार की इच्छा होती है तो क्या इतनी देर तक उनकी भूख मिटी रहती है? इतनी देर वे तृप्त रहते हैं। उत्तर-ऐसा नहीं हैं, छद्मस्थ को एक इच्छा के बाद जब दूसरी इच्छा होती है तो उसमें असंख्यात समय लग ही जाते हैं 'क' अक्षर का श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २३६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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