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________________ बातों का ज्ञान गौतम स्वामी को न देते तो आज यह हमारी समझ में कैसे आती? बच्चे को चलाने के लिए माता, बच्चे की चाल में चले, फिर भी बच्चा अगर बैठ ही जाये- चले ही नहीं, तो इसके लिए माता क्या करेगी? इसी प्रकार भगवान् ने हम लोगों को यह ज्ञान दिया है, लेकिन अगर हम लोग इसे अपने ध्यान में ही न लें, तो इसके लिए दूसरा कोई क्या कर सकता है? यह तो हमारा ही अपराध है। भगवान् महावीर ने गौतम स्वामी का नाम दोहराकर यह सिखाया है कि अगर दूसरों को शिक्षा देनी है तो सादे और सुगम बनो। साथ ही भगवान् ने शिष्यों को यह समझाने का प्रयत्न किया है कि जो गुरु तुम्हारे लिए अपनी महत्ता का भी त्याग करते हैं, उनकी बात पर ध्यान दो। भक्त तुकाराम ने एक जगह कहा है कि परमात्मा का वर्णन करने की ताकत मेरी जबान में नहीं है। उसने बड़ी से बड़ी शक्ति को भी छोटी करके हमारे लिए व्यवहार किया है। संसार में पारस उत्तम और लोहा नीच माना जाता है लेकिन पारस अपना बड़प्पन छोड़कर, लोहे का संसर्ग करके उसे सोना बना देता है। इसी में पारस की महिमा है। यही बात उन महात्मा के विषय में कही जा सकती है जो तीन ज्ञान लेकर जन्मे ही थे और दीक्षा धारण करते ही उन्हें चौथा मनःपर्याय ज्ञान भी प्राप्त हो गया था और कुछ वर्षों बाद सर्वज्ञता प्राप्त हो गई थी, जिनके दर्शन के लिए इन्द्र भी लालायित रहता था। इस प्रकार की लोकोत्तर महिमा से मंडित श्रमण भगवान् महावीर स्वामी संसारी जीवों के कल्याण के लिए ग्रामों और नगरों में फिरते और उन्हें सुख का मार्ग दिखलाते थे, नगर निवासियों का रहन सहन तो उच्च कोटि का होता है, पर बेचारे ग्रामीणों का वैसा कहाँ? फिर भी भगवान् ने उन ग्रामीणों से घृणा नहीं की और अपने गौरव की परवाह न करके उनका उद्धार करने हेतु उनके पास पहुंचे। मित्रों! गरीबों पर घृणा आना ही नरक है। संसार की ऐसी स्थिति हो रही है कि जो धन पैतृक है, उसकी अस्थिरता बैंकों के बंद होने से दिखाई दे रही है, फिर भी सुकृत नहीं सूझता। लक्ष्मी और जीवन की चपलता को जानते हुए भी लोगों के जीवन का एक मात्र साध्य धन बन रहा है। ___ गौतम स्वामी ने श्वासोच्छवास के पश्चात् नारकी जीवों के आहार के विषय में प्रश्न किया है। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने बतलाया - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २३५
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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