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________________ नरक के जीवों के श्वासोच्छवास का वर्णन करके यह दिखलाया गया है कि- 'हे प्राणी! समझ ले, पहले ही सावधान हो ले। देख, नरक के जीवों को कितना कष्ट होता है।' नरक के दुःखों का वर्णन देखकर आत्मा सचेत हो जाये इसीलिए श्री गौतम स्वामी ने नरक का वर्णन पूछा है और भगवान् ने नरक का वर्णन किया है। भगवान् महावीर ने नरक का वर्णन ही नहीं किया है, अपितु नरक को अपना पुराना घर बतलाया है। उन्होंने गौतम से कहा है कि- हे गौतम! मैं और तू दोनों नरक में भी गये हैं और स्वर्ग में भी गये हैं। संसार की कोई योनि शेष नहीं, जिसमें संसारी जीव अनेक बार न भटक आया हो। असंख्य काल ऐसी स्थितियों में व्यतीत किया है। ऐसा विचार कर समय भर का भी प्रमाद न करो। मित्रों! आपको भी यही बात सोचनी चाहिए। अगर आप इस ओर ध्यान न देंगे तो याद रखिए, नरक का द्वार अभी तक खुला हुआ है। वह बन्द नहीं हुआ है। यहां एक बात लक्ष्य देने योग्य है। भगवान् ने प्रत्येक उत्तर के प्रारम्भ में 'हे गौतम! इस प्रकार संबोधन किया है। सिर्फ उत्तर ही न देकर सम्बोधन करने की क्या आवश्यकता थी? इसका उत्तर यह है कि भगवान् ने ऐसा करके हमें शिष्य को उत्तर देने की विधि बतलाई है। जिस शिष्य ने प्रश्न पूछा है, उत्तर देते समय उस शिष्य का नाम लेने से, शिष्य के हृदय में आदर-बुद्धि उत्पन्न होती है। शिष्य के प्रति यह मृदुतापूर्ण व्यवहार को सूचित करता है। __ अगर कोई प्रश्न करे कि गुरु को शिष्य के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिये? तो इसका उत्तर होगा- जैसे भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी के प्रति किया था। शिष्य को सम्बोधन करने से एक बात और होती है। इससे शिष्य का उत्साह बढ़ता है और शिष्य बारम्बार प्रश्न पूछता है। गुरु शिष्य का नाम लेकर उत्तर देता है, इससे प्रश्न का निर्णय भी ठीक घटता है और वचन आदरणीय हो जाता है। भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के प्रश्नोत्तर से ऐसा लक्षित होता है, मानों दोनों में पिता-पुत्र का संबंध था। गौतम ने भगवान् से बालक की तरह प्रश्न किये हैं और भगवान् ने गौतम के प्रश्नों का उत्तर उसी भांति दिया है, जैसे पिता, पुत्र की बात का उत्तर देता है। पिता अपने पुत्र की तोतली - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २३३
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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