SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसके पश्चात् गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि-भगवन्! नरक के जीव क्या श्वासोच्छवास भी लेते हैं? भगवान् ने इस प्रश्न का उत्तर हां में दिया है। तब गौतम स्वामी पूछते हैं कि उनका श्वासोच्छवास कितने समय में होता है? इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया है कि प्रज्ञापन्ना सूत्र में इसका वर्णन किया है, वहां से जान लेना चाहिए। इस प्रश्नोत्तर में 'आणमंति' और 'पाणमंति' शब्द आये हैं। इनका क्रमशः अर्थ है-श्वास लेना और छोड़ना। शरीर के भीतर हवा खींचने को आणमन या श्वास लेना कहते हैं और शरीर के बाहर हवा निकालने को प्राणमन या श्वास छोड़ना कहते हैं। किसी किसी आचार्य के मत से श्वासोच्छवास दो प्रकार के होते हैं:- एक आध्यात्मिक श्वासोच्छवास और दूसरा बाह्य श्वासोच्छवास आध्यात्मिक श्वासोच्छवास को आणमन और प्राणमन कहते और बाह्य को उच्छवास निःश्वास कहते हैं। श्वास की क्रिया में समस्त योग का समावेश हो जाता है। जो महाप्राण पुरुष श्वासोच्छवास को समझ लेता है और बाह्य श्वासोच्छवास को अभ्यन्तर कर लेता है अर्थात् श्वासोच्छवास पर अधिकार कर लेता है, उसके लिए कोई कार्य कठिन नहीं रह जाता। जो लोग अधिक उम्र तक जीते हैं, वे इसी क्रिया के प्रताप से। खाना-पीना आदि सब श्वास पर ही निर्भर है। अभी श्वास पर थोड़ा-सा काबू है। अगर इतना भी काबू न रहे तो शरीर में मल-मूत्र भी टिकना कठिन हो जाये। शरीर में मल-मूत्र का न टिकना श्वास पर अधिकार न होने का फल है। कई लोगों का दम उठने लगता है, यह भी श्वास पर नियंत्रण न होने के कारण ही। आप लोग अपने को सुखी मानते हैं, लेकिन सारे सुख का आधार श्वास ही है। जिस समय श्वास पर से अधिकार उठ जाता है, उसी समय सारे सुख हवा में उड़ जाते हैं। श्वास की क्रिया बिगड़ने से आत्मा को कितनी असाता होती है, यह तो भुक्तभोगी ही जान सकते हैं। वास्तव में साता-असाता श्वास पर ही निर्भर है। योगीजन बाह्य श्वासोच्छवास को अभ्यन्तर कर लेते हैं, अतः उन्हें न रोग होता है, न शोक होता है। एक बार किसी समाचार पत्र में पढ़ा था कि अमेरिका में एक स्त्री अस्सी वर्ष की है मगर दिखती वह तीस वर्ष की है। उसने श्वासोच्छवास की क्रिया की सुन्दर साधना की है। लोग बाहरी क्रियाओं की ओर दौड़ते हैं, परन्तु इस विषय में उदासीन रहते हैं। जो पुरुष अपने बाह्य श्वासोच्छवास को - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २३१
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy