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आयु कर्म के पुद्गलों के रहने की मर्यादा स्थिति कहलाती है। आत्मा रूपी दीपक में, आयु कर्म रूपी तेल के विद्यमान ने की सामयिक मर्यादा का नाम स्थिति है।
जो जीव अशुभ कर्म बांधकर नरक योनि में जाते हैं, वे वहां कम से कम दस हजार वर्ष अवश्य रहते हैं। कोई भी जीव दस हजार वर्ष पहले नरक से लौट कर नहीं आ सकता। इसी प्रकार नरक में अधिक से अधिक तेतीस सागरोपम तक जीव रहता है। कोई भी जीव तेतीस सागरोपम से अधिक समय तक नरक में नहीं रह सकता। यही नरक की जघन्य और उत्कृष्ट आयु कहलाती है।
सागरोपम किसे कहते हैं, यह जान लेना आवश्यक है। यह संख्या लोकोत्तर है। अंकों द्वारा उसे प्रकट नहीं किया जा सकता। अतः उसे समझाने का उपाय उपमा है। उपमा द्वारा ही उसकी कल्पना की जा सकती है। इसी कारण उसे उपमा-संख्या कहते हैं, और इसी कारण 'सागर' शब्द के बदले 'सागरोपम' का व्यवहार भी किया जाता है, सागरोपम का स्वरूप इस प्रकार है।
चार कोस लम्बा और चार कोस चौड़ा तथा चार कोस गहरा एक कुआ हो। कुरू युगलिया के सात दिन के जन्मे बालक के बाल लिये जावें। युगलिया के बाल अपने बालों से 4096 गुने सूक्ष्म होते हैं। उन बालों के बारीक से बारीक टुकड़े-काजल की तरह किये जावें। चर्म-चक्षु से दिखाई देने वाले टुकड़ों से असंख्य गुने छोटे टुकड़ें हों। अथवा सूर्य की किरणों में जो रज दिखाई देती है उससे असंख्य गुने छोटे हों। ऐसे टुकड़े करके उस कुंए में ठसाठस भर दिये जावें। सौ-सौ वर्ष व्यतीत होने पर एक-एक टुकड़ा निकाला जाये। इस प्रकार निकालते निकालते जब वह कूप खाली हो जाये, तब एक पल्योपम होता है। ऐसे दस क्रोडाक्रोडी कप जब खाली हो जाएं तब एक सागरोपम होता है। एक करोड़ को एक करोड़ की संख्या से गुणा करने पर जो गुणनफल आता है, वह, क्रोड़ाक्रोड़ी कहलाता है। ऐसे तेतीस सागरोपम की या 330 क्रोड़ाक्रोड़ी पल्योपम की नरक की उत्कृष्ट स्थिति है। यह आत्मा ऐसी स्थिति में रह आयी है।
नरक की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है। जघन्य और उत्कृष्ट के बीच की समस्त स्थिति मध्यम स्थिति कहलाती है। दस हजार वर्ष से एक समय अधिक से लेकर तेतीस सागरोपम से एक समय कम तक की स्थिति मध्यम समझनी चाहिए। २३० श्री जवाहर किरणावली
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