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जाता है अतः यह पाँच पद विगत पक्ष की अपेक्षा हैं, यह कहना उचित ही
है।
इस प्रकार सामान्य पक्ष के समर्थक आचार्यों का कथन है कि आपका पक्ष एक देशीय और हमारा पक्ष सर्वदेशीय है।
शंका-शास्त्र तत्व का निरूपण करता है। वह संसार की साधारण बातों पर प्रकाश नहीं डालता। अतएव हमने विशेष पक्ष लेकर इन पदों के द्वारा तत्व का व्याख्यान किया है, वही ठीक है। सामान्य पक्ष स्वीकार कर आपने संसार की सभी बातों का समावेश कर दिया है। संसार के छेदन भेदन की क्रिया तो चलती ही रहती है। उस पर विचार की क्या आवश्यकता है। वह तो अतत्व रूप है। शास्त्र को उससे क्या प्रयोजन? शास्त्र तो केवल तत्व की बात बतलाता है।
समाधान-इस कथन से यह प्रकट होता है कि आप को तत्व अतत्त्व का समाचीन बोध नहीं । क्या अकेला मोक्ष ही तत्व है? दूसरे तत्व नहीं हैं? अगर ऐसा हो तो शास्त्रकारों ने नरक, स्वर्ग आदि का वर्णन क्यों किया है? अगर मोक्ष ही अकेला तत्व रूप माना जाय तो उसके सिवा सभी अतत्त्व ठहरते हैं। मगर ऐसा नहीं है। हमने जो व्याख्या की है वह तात्त्विक ही है, अतात्त्विक तनिक भी नहीं है।
तो क्या शाक भाजी का छिदना, भाले से किसी चीज का भिदना, घास-फूस का जलना, मर जाना और जर्जरित होना भी तत्त्वरूप है? इसका उत्तर है-हाँ, अवश्य । बिना तत्व की कोई बात ही नहीं है। संसार के समस्त पदार्थों का जिन-प्रणीत तत्वों में समावेश हो जाता है। ऐसा कोई पदार्थ विद्यमान नहीं जो तत्त्व से बहिर्भूत हो।
शंका-बिना तत्त्व की कोई बात नहीं है, इसे स्पष्ट कीजिए?
समाधान-पहला पद 'चलमाणे चलिए' है। इसके विरुद्ध जो चलमाणे अचलिए कहता है; उसे निश्चयनय का ज्ञान नहीं है। यदि चलमाणे को चलिए न कहा जाय तो निश्चय नय उठ जाता है। अतः निश्चय नय का ज्ञान कराने के लिए ही उक्त नौ पद कहे गये हैं। यह बात तनिक और स्पष्टता से समझाई जाती है।
कल्पना कीजिए- एक मनुष्य कह रहा है कि अमुक पुरुष कलकत्ता की ओर चल रहा है। अब उसे गया हुआ कहें या नहीं गया हुआ कहें। अभी उस पुरुष ने कलकता की ओर एक ही पैर उठाया है। वह कलकता पहुँचा २२४ श्री जवाहर किरणावली