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2. नाम की व्याख्या
भगवती सूत्र का एक नाम 'विआह पण्णति' सूत्र है। इस नाम का अर्थ क्या है? क्यों यह नाम पड़ा हैं? इन प्रश्नों का समाधान करने के लिए टीकाकार कहते हैं 'विआहपण्णत्ति' (वि-आ-ख्या प्रज्ञप्ति) नाम में 'वि' का अर्थ है विविध प्रकार से। 'आ' का अर्थ है अभिविधि या मर्यादा। 'ख्या' का अर्थ है कथन। और 'प्रज्ञप्ति' का अर्थ है प्ररूपणा। तात्पर्य यह है कि जिस शास्त्र में विविध प्रकार के जीव आदि पदार्थों संबंधी, समस्त ज्ञेय पदार्थों की मर्यादा पूर्वक अथवा परस्पर पृथक लक्षणों के निर्देशपूर्वक, श्री महावीर स्वामी से गौतम गणधर आदि द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर कथन का प्ररूपण किया गया है, वह 'विआहपण्णत्ति' (व्याख्याप्रज्ञप्ति) सूत्र है।
तात्पर्य यह है कि भगवान् महावीर ने श्री गौतम को जो यथावस्थित उत्तर दिये, उन प्रश्नों और उत्तरों की प्ररूपणा सुधर्मा स्वामी ने अपने ज्येष्ठ अन्तेवासी जम्बू स्वामी को सुनाई। श्रीसुधर्मा स्वामी ने कहा- 'हे जम्बू! गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर के समक्ष ये प्रश्न उपस्थित किये और भगवान् ने उन प्रश्नों का यह उत्तर दिया। इस प्रकार गौतम और महावीर स्वामी के कथन का जिस-जिस सूत्र में निरूपण किया गया है वह व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र है। इस सूत्र में समस्त जीवादि पदार्थों का निरूपण किया गया है।
अथवा विविध प्रकार से या विशेष रूप से जिनका आख्यान किया जाये वह व्याख्या -अर्थात् पदार्थों की वृत्तियांधर्म। पदार्थों के धर्मों का (व्याख्याओं का) जिसमें प्ररूपण किया जाये वह सूत्र 'व्याख्या प्रज्ञप्ति' है।
पदार्थ दो प्रकार के होते हैं-अभिलाप्य और अनभिलाप्य। वाणी द्वारा जिन पदार्थों का कथन किया जा सकता है वह अभिलाप्य हैं और जो पदार्थ ज्ञान में प्रतिभासित होता हो मगर वाणी द्वारा कहा न जा सकता हो वह अनभिलाप्य कहलाता है। जो अभिलाप्य पदार्थ विशेष रूप से कहे जा सकें
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श्री जवाहर किरणावली
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