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उत्तर- यद्यपि 'हंता गोयमा' अर्थात हाँ गौतम ऐसा ही है, इतना कहने से काम चल जाता तथापि अपनी आज्ञा दोहराने के लिए भगवान ने ऐसा फरमाया है। प्रश्न के शब्दों को दोहरा देने से वक्तव्य स्पष्ट हो जाता है। शिष्यों के अनुग्रह के लिए इतनी स्पष्टता आवश्यक है।
प्रश्न-'जाव' शब्द कहने की क्या आवश्यकता है?
उत्तर-पाठ का संकोच करने के लिए 'जाव' शब्द कहा गया है। 'चलमाणे चलिए' कहकर यह प्रश्न का प्रथम पद 'णिज्जरिज्जमाणे णिज्जिण्णे' यह अंतिम पद कहा गया है और 'जाव' शब्द से बीच के सब पदों का ग्रहण हो जाता है।
इन पदों की व्याख्या समाप्त करते हुए आचार्य कहते हैं कि ये नौ पद कर्म के विषय में कहे गये हैं। कर्मों के ही संबंध में यहां विचार किया गया है। यहां मुख्य प्रश्न यह था कि वर्तमान के लिए भूतकाल का निर्देश करना क्या उचित है? गौतम स्वामी ने इसी जिज्ञासा से ये प्रश्न किये थे। भगवान ने उत्तर में कहा-हाँ गौतम ! यह ठीक है।
इस विषय में कुछ व्यावहारिक विवेचन की आवश्यकता है। संक्षेप में कुछ प्रकाश डाला जाता है
यहां मोक्ष प्राप्ति के नौ पद कहे हैं मगर देखना चाहिए कि मोक्ष क्या चीज है? मोक्ष को जानने के लिए बंधन को जानना आवश्यक है। मोक्ष का अर्थ है-बंधन से छूटना। जब तक बंधन को भली-भाँति जान लिया जाय, तब तक मोक्ष को भली भाँति नहीं जाना जा सकता।
लोग काम करने से पहले फल का विचार करते हैं। कार्य चाहे पूरा न हो मगर फल न मिला तो उनकी निराशा का पार नहीं रहता। किन्तु ज्ञानीजनों का कथन यह है कि फल न दिखने से घबराओ मत। कार्य करना ही अपना कर्त्तव्य समझो, फल की कामना न करो। जो कर्तव्य आरंभ किया है, उसी में जुटे रहो' फल आप ही दिखाई देने लगेगा। 'चलमाणे चलिए' का सिद्धान्त यही सिखलाता है कि मोक्ष गया नहीं है लेकिन जाने लगा कि गया ही समझो। इसलिए असंख्यात भवों में जिसे मोक्ष को जाना है वह मोक्ष आज ही हुआ क्यों न कहा जाय?
ये नौ प्रश्न विश्वासमय बनाते हैं। जिस मनुष्य के मन में निराशा छाई रहती है वह कोई भी काम दृढ़ता पूर्वक नहीं कर सकता। उसका तन काम करता है और मन विद्रोह करता है। तन और मन के संघर्ष में उसकी शक्तियां क्षीण हो जाती हैं और उसे सफलता भाग्य से ही मिल सकती है। २०८ श्री जवाहर किरणावली