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समय लगेंगे। यद्यपि अभी कपड़ा पूरा बुना नहीं गया है, बुना जायेगा, लेकिन बुनने के लिए एक तार डालने पर भी कपड़ा बुना गया कहलाता है। इस प्रकार वर्तमान की बात भी भूतकाल में बतलाई जाती है। यह नित्य के लोक-व्यवहार में हम देख सकते हैं। हम देखतें हैं कि पहले समय में जो तार बुना गया है, उसी के आधार पर 'कपड़ा बुना गया' ऐसा कहा जाता है।
__ इस प्रकार का लोक-व्यवहार भी निराधार नहीं है। वस्त्र की उत्पत्ति एक क्रिया है। अन्यान्य क्रियाओं की भाँति इस क्रिया में भी असंख्यात समय लगते हैं। अतएव बुनने की क्रिया में जितने समय लगेंगे, उनके प्रारम्भिक समय में ही 'कपड़ा बुना गया' यह कहा जायगा। अगर ऐसा न कहा जाय, न माना जाय तो फिर कहना होगा कि अन्यान्य तार डालने पर भी कपड़ा उत्पन्न नहीं हुआ। जैसे एक तार डालने पर वस्त्र बुना गया नहीं कहा जा सकता, उसी प्रकार दो, तीन, चार, दस बीस और सौ तार डालने पर भी बुना गया नहीं कहलाएगा। ऐसी स्थिति में पहला तार डालने की क्रिया निरर्थक हुई, इसी प्रकार आगे के तार डालना भी निरर्थक होगा और फिर सभी तार निरर्थक हो जाएँगे। तात्पर्य यह है कि यदि पहला तार डालने की क्रिया करने पर भी कपड़ा उत्पन्न नहीं हुआ तो कहना होगा कि तार डालने की क्रिया निष्फल गई । जो चीज बनानी है, क्रिया करने पर भी अगर वह नहीं बनी तो यही कहना चाहिए कि क्रिया निष्फल हुई । मगर इस प्रकार की निष्फलता स्वीकार करने से बड़ी गड़बड़ी होगी। फिर अगले तार डालने की क्रिया भी निरर्थक होगी और इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक तार डालना जब निरर्थक हुआ तो कपड़ा बुना ही नहीं गया। इस प्रकार प्रत्यक्ष से विरोध उत्पन्न होगा।
जो पहला तार डालने पर वस्त्र की उत्पत्ति नहीं मानते, मगर अन्तिम तार डालने पर ही उत्पत्ति मानते हैं, उन्हें यह सोचना चाहिए कि पहले तार की अपेक्षा अन्तिम तार में क्या विशेषता है? जैसे पहला तार एक था, उसी प्रकार अन्तिम तार भी एक है। अगर एक तार से वस्त्र नहीं उत्पन्न होता तो अन्तिम तार से उत्पत्ति कैसे कही जा सकती है? प्रथम और अंतिम तार समान हैं। अगर अंतिम तार से वस्त्र उत्पन्न हुआ माना जाय तो प्रथम तार से भी उसे उत्पन्न हुआ मानना चाहिए। जो शक्ति प्रथम तार में है, वही अंतिम में भी है। ऐसी अवस्था में पहला तार पड़ने पर वस्त्र उत्पन्न हुआ न मानना और अंतिम तार पड़ने पर मानना उचित नहीं कहा जा सकता। १६० श्री जवाहर किरणावली
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