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कोई-कोई श्रोता जौंक के समान होता है। जौंक को अगर दूध भरे स्तन पर लगाया जाय तो यह दूध न पीकर रक्त ही पीती है। किसी कवि ने कहा है
अवगुण को उमगी गहें, गुण न गहें खल लोक ।
रक्त पिये पय ना पिये, लगी पयोधर जौंक ।।
इसी प्रकार जो श्रोता वक्ता के छिद्र तो देखते हैं, परन्तु वक्ता के मुख से निकलने वाली अमृतवाणी को ग्रहण नहीं करते, वे जौंक के समान हैं। भगवान ने चौदह प्रकार के वक्ता कहे हैं, मगर साथ यह भी कहा है कि श्रोता के वक्ता के दोष न देख कर गुण ही ग्रहण करना चाहिए । जहाँ अमृत मिल सकता है वहाँ रक्त ग्रहण करना उचित नहीं है ।
विधिपूर्वक वन्दना नमस्कार करके गौतम स्वामी ने भगवान महावीर स्वामी से स्वीकृति प्राप्त करके प्रश्न किये जिनका वर्णन आगे किया जाएगा ।
।। इति ।।
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १८ १