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________________ अवस्थाओं को ही अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा कहते हैं। मगर यह नहीं समझना चाहिए कि हमारा ज्ञान सीधा अवग्रह से आरंभ होता है। अवग्रह से भी पहले दर्शन होता है। दर्शन में महासामान्य अर्थात् सत्ता का प्रतिभास होता है। सत्ता का प्रतिभास हो चुकने पर अवग्रह ज्ञान होता है। अवग्रह में भी पहले व्यंजनावग्रह फिर अर्थावग्रह होता है। अवग्रह के पश्चात् संशय का उदय होता है। तब संशय को हटाता हुआ, ईहा,ईहा के अनन्तर अवाय और अवाय के पश्चात् धारणा ज्ञान होता है। इस प्रकार अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा क्रमपूर्वक ही होते हैं। पहला ज्ञान हुए बिना दूसरा आगे वाला ज्ञान नहीं हो सकता। ___ पहले आचार्य का कथन है कि गौतम स्वामी को प्रथम श्रद्धा, संशय और कौतूहल में प्रवृत्ति हुई। यह तीनों अवग्रह ज्ञान रूप हैं। प्रश्न होता है कि यह कैसे मालूम हुआ कि गौतम स्वामी को पहलेपहल अवग्रह हुआ? इसका उत्तर यह है कि-पृथ्वी में दाना बोया जाता है। दाना, पानी का संयोग पाकर पृथ्वी में गीला होता है-फलता है और तब उसमें से अंकुर निकलता है। अंकुर जब तक पृथ्वी से बाहर नहीं निकलता, तब तक दीख नहीं पड़ता। मगर जब अंकुर पृथ्वी के बाहर निकलता है तब उसे देखकर हम यह जान लेते हैं कि यह अंकुर पहले छोटा था, जो दीख नहीं पड़ता था, मगर था वह अवश्य । अगर वह छोटे रूप में न होता तो अब बड़ा होकर कैसे दीख पड़ता? इस प्रकार बड़े को देखकर छोटे का अनुमान करना ही चाहिए। कार्य को देखकर कारण को मानना ही न्यायसंगत है। बिना कारण के कार्य का होना असंभव है। अगर बिना कारण के कार्य का होना मान लिया जाय तो संसार का नियम ही बिगड़ जायेगा। एक और उदाहरण लीजिए। मुर्गी के अंडे में पानी ही पानी होता है, शरीर नहीं होता। अगर उस अंडे के पानी में मुर्गी का शरीर न माना जाये तो क्या बिना उस पानी के मुर्गी का शरीर बन सकता है? नहीं। यद्यपि उस पानी में आज मुर्गी नहीं दीख पड़ती है, लेकिन जिस दिन मुर्गी दिखेगी उस दिन उसकी पानी रूप पर्याय का अनुमान अवश्य किया जायेगा, क्योंकि उस पर्याय के बिना मुर्गी का शरीर बन ही नहीं सकता। __इसी प्रकार कार्य-कारण के संबंध से यह भी जाना जा सकता है कि जो ज्ञान ईहा के रूप में आया है वह अवग्रह के रूप में अवश्य था, क्योंकि बिना अवग्रह के ईहा का होना संभव नहीं है। गौतम स्वामी छद्मस्थ थे। उन्हें १७८ श्री जवाहर किरणावली -
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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