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अलग है। इसी क्रम से और भी तार टूटते हैं। अब समस्त तारों के टूटने के काल का विचार करना चाहिए। घड़ी में सैकेंड तक के हिस्से किये जा सके हैं। अगर सारा कपड़ा फाड़ने में एक सैकैंड लगा है तो कपड़े में जितने तार हैं, उतने ही हिस्से सैकैण्ड के हो गये।
तात्पर्य यह कि स्थूल दृष्टि से लोग समझते हैं कि इन्द्रिय या मन से ज्ञान होने में देर नहीं लगती, परन्तु वास्तव में बहुत काल लग जाता है। इन्द्रिय या मन से ज्ञान होने में कितना काल लगता है, यह बात नीचे बताई जाती है।
जब हम किसी वस्तु को देखना चाहते हैं तब सर्व प्रथम दर्शनोपयोग होता है। निराकार ज्ञान को, जिसमें वस्तु का अस्तित्व मात्र प्रतीत होता है, जैन दर्शन में दर्शनोपयोग कहते हैं। दर्शन हो जाने के अनन्तर अवग्रह ज्ञान होता है। अवग्रह दो प्रकार का है (1) व्यंजनावग्रह और (2) अर्थावग्रह । मान लीजिए, कोई वस्तु पड़ी है, परन्तु उसे दीपक के बिना नहीं देख सकते। जब दीपक का प्रकाश उस पर पड़ता है तब वह वस्तु को प्रकाशित कर देता है। इसी प्रकार इन्द्रियों द्वारा होने वाले ज्ञान में, जिस वस्तु का जिस इन्द्रिय से ज्ञान होता है, उस वस्तु के परिमाणु इन्द्रिय से लगते हैं। उस वस्तु का और इन्द्रिय का सम्बन्ध व्यंजन कहलाता है। व्यंजन का वह अवग्रह व्यंजनावग्रह कहलाता है। यह व्यंजनावग्रह आंख और मन से नहीं होता, क्योंकि आंख और मन का वस्तु के परमाणुओं के साथ संबंध नहीं होता। यह दोनों इन्द्रियां पदार्थ का स्पर्श किये बिना ही पदार्थ को जान लेती हैं। अर्थात् अप्राप्यकारी हैं। शेष चार इन्द्रियों से ही व्यंजनावग्रह होता है। आंख और मन को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों से पहले व्यंजनावग्रह ही होता हैं।
व्यंजनावग्रह के पश्चात् अर्थावग्रह होता है। व्यंजनावग्रह से, सामान्य रूप से जानी हुई वस्तु में, 'यह क्या है?' ऐसी जानने की इच्छा होना अर्थावग्रह है। अर्थावग्रह में भी वस्तु का सामान्य ज्ञान ही होता है।
__ अवग्रह के इन दो भेदों में से अर्थावग्रह तो पांचों इन्द्रियों से और मन से भी होता है। अतएव उसके छह भेद हैं। व्यंजनावग्रह आंख को छोड़कर चार इन्द्रियों से ही होता है वह मन एवं आंख से नहीं होता।
तात्पर्य यह है कि इन्द्रियों और मन से ज्ञान होने में पहले अवग्रह होता है। अवग्रह एक प्रकार का अव्यक्त ज्ञान है। जिसे यह ज्ञान होता है उसे स्वयं ही मालूम होता कि मुझे ज्ञान हुआ है। लेकिन विशिष्ट ज्ञानियों ने इसे भी देखा है। जिस प्रकार कपड़ा फाड़ते समय एक-एक तार का टूटना मालूम नहीं १७६ श्री जवाहर किरणावली