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'जी नहीं
मित्र पर तलवार चलाने से क्षत्रियत्व प्रकट होता है कि मित्र पर तलवार न चलाने से क्षत्रियत्व प्रकट होता है?
'न चलाने पर।
स्वार्थ से प्रेरित होकर अपने मित्र को मार डालने वाला क्षत्रिय क्या वास्तव में क्षत्रिय कहला सकता है?
'कदापि नहीं।
क्षत्रिय के मित्र होते हैं और शत्रु भी होते हैं, इसलिए वह मित्रों को बचाता है और शत्रुओं को मारता है, लेकिन गौतम स्वामी का शत्रु कोई है ही नहीं, उनके सभी मित्र ही मित्र हैं। उनका सिद्धान्त है -
मित्ती से सव्वभुएसु। जब उनका कोई शत्रु नहीं है, सब मित्र ही मित्र हैं, तो वे तेजोलेश्या किस पर चलावें?
गौतम स्वामी की प्राणीमात्र पर मित्रता की भावना है, यह इससे सिद्ध है कि उन्होंने तेजोलेश्या के होते हुए भी किसी पर उसका प्रयोग नहीं किया। आप कह सकते हैं कि जो अकारण ही ऊपर धूल फैंके उसे शत्रु समझना चाहिए, लेकिन जिसमें शत्रु-मित्र का भेदभाव हो वही धूल डालने वाले को शत्रु समझता है। गौतम स्वामी इस भेदभाव से परे हो गये हैं, उनकी दृष्टि में शत्रु-मित्र का भेद नहीं है; वे समस्त जीवों को मित्र ही मित्र मानते हैं। सम्मान करने वाला और अपमान करने वाला दोनों ही उनके आगे समान हैं।
सन्तों में क्षमा गुण की विशेषता पाई जाती है, इसीलिए वे वन्दनीय हैं। सम्मान के समय क्षमा की कसौटी नहीं होती। क्षमा की परीक्षा उसी समय होती है जब अप्रिय व्यवहार किया जाये, निन्दा की जाये, गुण होने पर भी दुर्गुणी बताया जाये। ऐसे अवसरों पर जिनके मनमहोदधि में किंचित् भी क्षोभ उत्पन्न नहीं होता, जिनके चेहरे पर सिकुड़न नहीं आती, जिनके नेत्र लाल होकर भौहें तन नहीं जातीं, वही पुरुषवर क्षमाशाली कहलाते हैं।
आप क्षमाशील को साधु मानते है, या थप्पड़ के बदले घूसा मारने वाले को? 'क्षमाशील को।
गौतम स्वामी उस पुरुष पर तो क्रोध करते ही क्यों जो उनका सत्कार करता है। रही अपमान करने वाले को सजा देने की बात । अगर वह अपमान करने वाले को अपनी तेजोलेश्या से भस्म कर देते तो क्या आप उन्हें मानते? क्या उनका इस प्रकार बखान करते? क्या वे हमारे लिए आदर्श होते? नहीं, १५६ श्री जवाहर किरणावली