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कंकर को भी संवार कर, अच्छे कपड़े में लपेट कर रास्ते में डाल दिया जाये तो लोग उसे उठा लेंगे। इसके विपरीत अगर मूल्यवान् हीरे को मैले-कुचेले फटे चीथड़े में बांधकर डाल दिया जाये तो उसे सहसा उठाने की कोई इच्छा न करेगा। यही शरीर की स्थिति है। शरीर का साज-सिंगार करके उसे सुन्दर बनाया जाये तो ब्रह्मचर्य टिक नहीं सकता। गौतम स्वामी शरीर में निवास करते हुए भी मानों शरीर से अतीत हैं। वे आत्मा में ही रमण करते हैं-शरीर को जैसे भूले हुए हैं।
ऐसा तप करने वाले और ब्रह्मचर्य पालने वाले के लिए कोई भी लौकिक या लोकोत्तर लब्धि या शक्ति दूर नहीं-समस्त शक्तियां उसकी मुट्ठी में रहती हैं। गौतम स्वामी की और लब्धियों का विचार न करके सिर्फ एक ही लब्धि का विचार कीजिए। उन्हें तेजोलेश्या नामक लब्धि प्राप्त हो गई थी।
___गौतम स्वामी ने अपनी उत्पन्न हुई तेजोलेश्या को संक्षिप्त करके शरीर में लीन कर ली है। उनकी तेजोलेश्या लब्धि बाहर नहीं है। यद्यपि उनकी तेजोलेश्या है विपुल विस्तार वाली मगर उन्होंने संकुचित करके इतनी छोटी बना ली है कि शरीर के बाहर नहीं निकलने देते। उनकी तेजोलेश्या का विस्तार इतना बड़ा है कि अगर उसे बाहर निकाल दिया जाये तो हजारों कोस में फैल कर चाहे जिसे भस्म कर डाले। इस तपोजनित लब्धि को गौतम स्वामी ने सिकोड़कर अपने ही शरीर में लीन कर लिया है।
अपनी विपुल शक्ति को दबा लेना और समय पर शत्रु पर भी उसका प्रयोग न करना बड़े से बड़ा काम है। शक्ति उत्पन्न होना महत्व की बात है मगर उसे पचा लेना और भी बड़ी बात है। महान् सत्वशाली पुरुष ही अपनी शक्ति को पचा पाते हैं। सामान्य मनुष्यों को तो अपनी साधारण सी शक्ति का भी अजीर्ण हो जाता है।
कहा जा सकता है कि अगर शक्ति का उपयोग न किया जाये तो वह किस काम की? फिर तो उसका होना न होने के बराबर है। क्षत्रिय तलवार बांधता है, लेकिन जब शत्रु सामने आया तब अगर तलवार न चलाई तो उसकी तलवार किस काम की? गौतम स्वामी में ऐसी लब्धि है कि हजारों कोस तक फैल कर वह चाहे जिसे भस्म कर सकती है, फिर भी अगर अपमान करने वाले को दंड न दे सके तो वह लब्धि किस मर्ज की दवा है!
मैं पूछना चाहता हूं कि क्षत्रिय की तलवार किस पर चलनी चाहिए? 'शत्रु पर! मित्र पर नहीं?
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ११५