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मिल सकता है उस धर्म के लिए जरा भी उत्साह न होना कितने बड़े दुर्भाग्य की बात है? मगर आजकल सर्वत्र यही दृष्टिगोचर हो रहा है कि मां दासी बन रही है और दासी रानी बन रही है।
सुधर्मा स्वामी, जम्बू स्वामी से कहते हैं कि भगवान् मोक्ष के कामी है, अभी मोक्ष में पहुंचे नहीं हैं। इस प्रकार मोक्ष कामी भगवान् महावीर राजगृह नगर के गुणशील बाग में पधारे।
भगवान मोक्ष के कामी हैं, अब तक मुक्ति में नहीं पहुंचे हैं, यह बात इसलिए कही गई है कि मोक्ष को प्राप्त हो जाने वाले बोलते नहीं हैं। उनके बोलने का कोई कारण ही शेष नहीं रहता है और भगवान् ने उपदेश दिया है। मोक्ष में पहुंचे हुए उपदेश नहीं देते, किन्तु देहधारी ही उपदेश देते हैं । कई लोगों की मान्यता यह है कि हमारे वेद अपौरुषेय हैं। अर्थात् किसी पुरुष के उपदेश से उनकी रचना नहीं हुई है वरन् वह आप ही प्रकट हुए हैं - अर्थात् अनादि काल से चले आये हैं। मगर जैन धर्म की मान्यता ऐसी नहीं है। शब्द ध्वनि रूप हैं और ध्वनि तालु, कंठ ओष्ठ आदि स्थानों से ही उत्पन्न होती है। तालु, कंठ आदि स्थान पुरुष के ही होते हैं, इसलिए शब्द पौरुषेय ही हो सकता है - अपौरुषेय नहीं । बिना बोले वचन नहीं होते, इसी बात को स्पष्ट करने के लिए शास्त्रकारों ने यह उल्लेख किया है कि भगवान् उपदेश देते समय मोक्ष में पहुंचे नहीं थे, किन्तु मोक्ष के कामी थे । कामी से मतलब है प्राप्त करने वाले ।
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प्रश्न- भगवान् पूर्ण रूप से वीतराग हैं। उनका छद्म चला गया है । मोहनीय कर्म सर्वथा क्षीण हो गया है, फिर उनमें कामना कैसे हो सकती है? कामना मोह का विकार है तो निर्मोह में वह कैसे संभव है?
उत्तर- भगवान् में वस्तुतः कामना नहीं है, फिर भी उपचार से उन्हें मुक्तिकामी कहा गया है। कोई कोई वस्तु असली स्वरूप में नहीं होती, लेकिन समझाने के लिए उसका आरोपण किया जाता है। जैसे जब किसी वस्तु में मनुष्य की बुद्धि काम नहीं देती तब समझाने के लिए कहते हैं कि यह घोड़ा है । यद्यपि वह चित्र है मगर आकार का ज्ञान कराने के लिए उसे घोड़ा कह देते हैं। ऐसा करने को उपचार कहते हैं । इस प्रकार शास्त्रों में अनेक स्थलों पर उपचार से भी काम लिया जाता है। यहां भी उपचार से अभिलाषा मानी
है ।
भगवान् को और कोई अभिलाषा नहीं है, केवल मोक्ष की अभिलाषा है, इस कथन का उद्देश्य यह है कि संसार के प्राणी अन्यान्य सांसारिक १३२ श्री जवाहर किरणावली