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दलपत कवि ने कहा है कि यदि तू चेते तो तुझे चेताऊं। मित्रों! आप भी अपनी आत्मा को चेताओ कि - 'रे अविवेकी! तू क्या कर रही है ? तू कौन है? कैसी है? और किस अवस्था में आ पड़ी है? जाग! अपने आपको पहचान ! अपने असली स्वरूप को निहार ! भ्रम को दूर कर! अज्ञान को त्याग ! उठ खड़ी हो। अभी अवसर है। इसे हाथ से न जाने दे। ऐसा स्वर्ण अवसर बार-बार हाथ नहीं आता । बुद्धिमान पुरुष की तरह अवसर से लाभ उठा ले ।' अगर आप अपने आपको इस प्रकार चेताओगे तो उठ खड़े होओगे। दूसरों का चेताना उतना उपयोगी नहीं हो सकता । अपने आपको आप ही जागृत करना चाहिए। सोचना चाहिए कि- मैं करने योग्य कार्य को छोड़े बैठा हूं और न करने योग्य कार्यों में दिन-रात रचा-पचा रहता हूं। अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो बाजी हाथ से निकल जायेगी। एक बार हाथ से बाजी निकल जाने पर फिर ठिकाना लगना कठिन है । फिर तो यहां भी दुःख ही दुःख है और वहां भी दुःख ही दुःख है । अरे प्राणी ! तू इतना पाप करता है सो किस प्रयोजन के लिए? कितना - सा जीवन है तेरा, जिसके लिए इतना पाप करता है ।
पानी में पतासा तन का तमाशा है !
यह जीवन कुछ ही समय का है। इस अल्पकालीन एक जीवन के लिए इतना काम करते हो, रात-दिन पसीना बहाते रहते हो। मगर भविष्य का जीवन तो अनन्त है। उस की भी कभी चिन्ता करते हो? क्या तुम यह समझते हो कि सदा-सर्वदा यही जीवन तुम्हारा स्थिर रहेगा? अगर तुम्हारे आंखें हैं तो दुनिया को देखो। क्या कोई भी सदा के लिए स्थिर रहा है या तुम्ही अकेले इस दुराशा में फंसे हो! एक समय आयेगा - निश्चित समझो कि वह समय बहुत दूर नहीं है, जब तुम्हारा वैभव तुम पर हंसेगा और तुम रोते हुए उसे छोड़ कर अज्ञात दिशा की ओर प्रयाण कर जाओगे ।
वर्तमान जीवन स्वल्पकालीन है और भविष्य जीवन अनन्त है। इसलिए हे भद्र पुरुष ! वर्तमान के लिए ही यत्न न कर, किन्तु भविष्य को मंगलमय बनाने की भी चेष्टा कर ।
साधारणतया आयु के सौ वर्ष माने जाते हैं, यद्यपि सब इतने समय तक जीवित नहीं रहते। इसमें से दस वर्ष बचपन के गये और बीस वर्ष तक पढ़ाई की। इस तरह तीस वर्ष निकल गये । शेष सत्तर वर्ष के आराम के लिए यदि बीस वर्ष तक पढ़ने की मेहनत उठाते हो तो अनन्त काल के सुख के लिए कितना परिश्रम करना चाहिए? जिसकी बदौलत सदा- सर्वदा के लिए सुख
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १३१