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________________ आपके मुनीम ने अगर भोजन नहीं किया है तो आप उसे भोजन करने की प्रेरणा करेंगे। अगर उसने निद्रा नहीं ली है तो आप उसे सोने की प्रेरणा करेंगे। आप समझेंगे कि यह खिलाना और सुलाना हमारा ही काम है। यदि मुनीम खाएगा-सोएगा नहीं तो हमारा काम यथावत् कैसे करेगा? इसी प्रकार आप अपने मुनीम को छुट्टी भी देते होंगे। वह अपने परिवार की सार-संभाल भी करता होगा, क्योंकि वह अपने परिवार की चिन्ता न करेगा तो आपकी चिन्ता कब करेगा? तात्पर्य यह है कि जैसे मुनीम के निजी कार्य को भी आप अपने कार्य का अंग मानते हैं, उसी प्रकार आप अपने निजी कार्य को भी संसार के कल्याण का अंग मान कर उस का निर्वाह कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके जीवन में विशालता का प्रवेश होगा और आपके व्यवहार में प्रामाणिकता, नैतिकता एवं धार्मिकता का समावेश होगा। जीवन में जो क्षुद्र स्वार्थपरता दृष्टिगोचर होती है, उसका स्थान लोक-कल्याण की भावना को प्राप्त होगा और इस प्रकार संसार में संघर्ष की प्रबलता का अन्त आकर प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे का सहायक, पूरक और उपग्राहक होगा। इस भावना से संसार में शान्ति का संचार होगा और अशान्ति का अन्त होगा। सच्चा सेवक अपने स्वामी की सेवा में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं होने देगा। भगवान् वीतराग आपके स्वामी हैं। उनकी सेवा इस भांति करो कि उसमें किसी प्रकार की कमी न होने पावे। भगवान् की सेवा किस प्रकार की जा सकती है, यह जानने के लिए बारह व्रतों पर विचार करना चाहिए। भगवान् द्वारा प्ररूपित बारह व्रतों को एक राजा भी पाल सकता है, आनन्द जैसा ग्यारह प्रतिमाधारी श्रावक भी पाल सकता है और पूणिया जैसा गरीब भी पाल सकता है। हां, शर्त यही है कि इनके पालन में किसी प्रकार का कपट न किया जाये। ___ एक मनुष्य भगवान् महावीर के मार्ग का दुश्मन बनने के लिए अपना विवाह करता है और दूसरा भगवान् का सेवक बनने के लिए करता है। इन दोनों के विवाहों में क्या अन्तर है? ऊपरी दृष्टि से चाहे अन्तर न दिखाई दे किन्तु वास्तव में दोनों में महान् अन्तर है। __ खारे पानी में रहने वाली मछली को लोग मीठी कहते हैं। भला खारे पानी की मछली मीठी कैसे हो गई? मछली खारे पानी में रहती हुई भी इस प्रकार से श्वास लेती है कि जिससे खारापन मिटकर मीठापन आ जाता है। यद्यपि मछली ने मीठापन अपने लिए पैदा किया है, फिर भी जिह्वालोलुप दुष्ट लोग कहते हैं कि यह हमारे खाने के लिए मीठी हो गई है। - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १२६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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